D@ Raygaan'   (बवाल)
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"इज्जत और ज़िल्लत आपके हाथ में नहीं है"
Joined 6 September 2017


"इज्जत और ज़िल्लत आपके हाथ में नहीं है"
Joined 6 September 2017
3 HOURS AGO

ग़ज़ब का शब्द है औरत..

शुरू ही और से होता है तो तय है कि उसे औरों के हिसाब से ही चलना है। यही उसकी नियति भी है। जब तक औरों के हिसाब से चले तो वो औरत कहलाती है और अगर मन की करने लगे तो जाने कैसे कैसे कु-नामों से उसे जाना जाने लगता है..

दूसरी और शब्द है पुरूष...

पुरु से शुरू होता है..मतलब स्वर्गीय असर वाले...पर स्वाभाविकत: होता विपरीत है। उन्हें अगर कोई कुनाम दिया भी जाए तो जैसे उन्हें सबकी माफ़ी हो..सब सहज हो और तो और जैसे उनके लिए कोई उपलब्धी हो।

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YESTERDAY AT 8:07

दूबों के किनारों पर ढूँढ़िये ओस के मोती
ये जब तब ही मिलते हैं जब रात है रोती

बड़ी मुश्किल में हैं जितने वफ़ा के किस्से
ऐसी मुश्किल तो यहाँ मरने में नहीं होती

बोझिल साँसें थी जो लेटी रहीं रात भर
आँखें बस तड़पती हैं, तनिक भी न सोती

कुछ देर को आलम था ख़्वाब में थे ज़िंदा
वो जो चाहते हैं उनकी मौत क्यों न होती

सब अक्षर लकीरों से उखाड़ फेंके हैं फिर
किसके हिस्से की आरज़ू किस्मत पिरोती

वो बेजान आँखों से तुम्हें तकता है बवाल
तुम पत्थर को इसकी भनक तक न होती

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20 APR AT 8:37

Dear ख़ालीपन...

Cont'd...

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13 APR AT 23:50

क्या मुझे तुम्हारा होना था!!

Cont'd...

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10 APR AT 8:22

औरतें...

Cont'd...

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9 APR AT 8:16

एक शजर...

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3 APR AT 9:51

ज़िंदगी का फलसफ़ा है जी लीजिए
अगर बची कहीं वफ़ा है जी लीजिए

उघाड़िये बदन के तले दबे घावों को
यही तो मज़ा ए ज़फ़ा है जी लीजिए

बेशक बे-मानी है हमारी सूरते हाल
मानो आख़िरी द़फा है जी लीजिए

दिल की शिकस्तगी नहीं थी आपसे
ये तो बंदगी बा-वफ़ा है जी लीजिए

छोड़िए! बड़ा मुश्किल है समझना
कौन, किससे ख़फ़ा है जी लीजिए

यहाँ खुद्दारी की क़ीमत है ज़िंदगी
न सोचिए क्या नफ़ा' है जी लीजिए

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1 APR AT 22:53

दहशतों के कारिंदों ने ख़बर भिजवाई है
अबके इंसान की इंसानियत से लड़ाई है

ज़रा दूर से देखना जब देखो अपनों को
सब के हाथों में खंजर, मुँह में मिठाई है

सियासत ज़हर है, अमल नहीं ये कोई
हुकूमतों ने लाशों से महफिलें सजाई है

आसमान रोने लगा बरबस ही हँसकर
जब-जब हमनें दिल में खुशी बसाई है

उधारी साँसों की ही थी जिंदगियों पर
किश्तों में ही सही पर सबने चुकाई है

मेरी ख़ामोशी कोई बयां दे भी तो कैसे
न तो मौत आई, न ज़िंदगी बन पाई है

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28 MAR AT 10:34

अपने लिए कुछ अनूठे शृंगार बचाये रखना तुम
आईने को ही अपना दिलदार बनाये रखना तुम

झाँकना गहरे तक यूँ कि नज़र रूह तक जाए
काजल से आँखों की कोरें सजाये रखना तुम

कोई नहीं है यहाँ जो तुम्हें तुमसे ज्यादा चाहेगा
इन होंठों पर अब्र-सी लाली लगाये रखना तुम

सब ख़ार थे तो बह निकले आँखों की धारों से
रुख़-ए-ताबाँ न ज़र्द हो इन्हें बचाये रखना तुम

तेरी बिंदिया ने रूमानियत बचा रखी है तुममें
इसे लगाकर एहसासों को सुलगाये रखना तुम

ना-मुमकिन कह पाना कि है कोई तुमसे सुंदर
ले बलाएँ अपनी ख़ुद को ये बताये रखना तुम

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25 MAR AT 9:59


इन रंगों से मेरे रंग मेल नहीं खाते

To be cont'd...

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