Praveen Tiwari   (अनजान मुसाफिर)
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Joined 8 November 2017


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Joined 8 November 2017
22 MAY 2022 AT 10:38

हर बार निकलता रहा
जनाज़ा मेरे ईश्क का...
हर दफ़ा अपनी मोहब्बत को
कन्धा दिया मैंने...!!

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11 APR 2022 AT 17:31

मोहब्बत में ये हुनर भी
आजमाना पड़ता है..
दर्द सह कर भी यहां;
मुस्कराना पड़ता है..
तुझसे मिलने तो आते हैं
हम खुद के होकर,
मिल के खुद को भी कहीं
छोड़ जाना पड़ता है...!!

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27 MAR 2022 AT 23:06

आवारगी पसन्द..
पसन्द भी है सादगी;
जीने को है बाकी बहुत कुछ;
पन्नों से परे भी है इक जिन्दगी...!!— % &

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24 FEB 2022 AT 22:58

तुझे खोकर ये एहसास हुआ दिल को..
गैरों पर ज्यादा हक नहीं जताया करते..!!— % &

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12 FEB 2022 AT 21:26

ईश्क का दस्तूर भी
अब कुछ यूं निभाना है,
किसी का हो तो जाना है;
उसे अपना नहीं बनाना है...!!

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16 JAN 2022 AT 21:53

उसको खो देने का दर्द तो आज भी है..
बस उसको पाने की तलब अब नहीं रही..!!

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12 JAN 2022 AT 20:36

हर सफ़र में जरा सा;
खुद से हम बिछड़ जाते हैं
हर दफा बनाते हैं इक अक्स नया,
पुराने वाले तो जैसे मर जाते हैं...!!

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5 JAN 2022 AT 19:24

मेरे जहां में नहीं तो फिर..
तेरे जहां में ही सही;
कहीं तो होता कोई शख्श..
जो मुझे भी बुरा कहता..!!

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17 NOV 2021 AT 10:00

जमीन से जुड़े लोगों का ही
ज़मीर होता है;
पैसा पास हो तो इन्सान
बस अमीर होता है..!!

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16 NOV 2021 AT 11:47

हमारे ईश्क का वो
कुछ यूं हसीं अन्जाम कर गया,
वो खुद भी गया और सारा शहर
वीरान कर गया....!!

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