Praveen   (ज़ौक़ | Zouq)
3.6k Followers · 109 Following

देखता बहुत कुछ हूँ ज़ौक़, लिखता मगर कम हूँ ।
Joined 6 November 2016


देखता बहुत कुछ हूँ ज़ौक़, लिखता मगर कम हूँ ।
Joined 6 November 2016
29 SEP 2018 AT 11:11

If we could combine
the curiosity of one year old
with the imagination of 5 year old
with the liabilities of 15 year old
with the body of 25 year old
with the strength of 35 year old
with the commitment of 45 year old
with the wealth of 55 year old
with the self realization of 65 year old
and forgetfulness of 75 years old,
we would all become
superhumans in our world

-


14 APR 2017 AT 13:13

सुना है आज तू फिर मुझसे ख़फ़ा है
जाने कैसे, मग़र मौसमों को भी ये पता है

-


8 MAR 2017 AT 8:57

Women's day पर महिलाओं को
आज हर दुकान में है छूट
जो छूट उन्हें सच में चाहिए, वो कहीं छुपा दो,
कहीं वो खुद ये सवाल न पूछ लें,
उन्हें बाज़ार में ही भटका दो

-


3 MAR 2017 AT 8:51

ज़िंदादिली दिखती नहीं इस शहर में अब
ज़हन में आया के इस शहर की मौत मुकम्मल कर दूं
फिर एक तितली दिखी इसी बियाबां में फूल ढूंढते
सोचता हूँ, इस शहर को थोड़ी और मोहलत दे दूं

-


14 FEB 2017 AT 9:09

पीली धूप का गाँव बसा
बसंत ने ली अंगड़ाई है,
बच्चों की किलकारी सुन के
गौरइया बौराई है,
फसल पक गयी खेतों में
दम भरने को पुरवाई है,
दोपहरी ने रोक दिया दिन
चावल कढ़ी बनाई है,
बाबा का हुक्का गरमाया
आंगन खाट बिछाई है,
आस पड़ोस के चाचा ताऊ
बैठे तो बतकहाई है,
कुँए पे देखो घूंघट काढ़े
नयी बहू शरमाई है,
खलिहानों में रौनक फिर से
लगता है लौट आई है,

-


2 AUG 2020 AT 23:58

चार दिनों का साथ हमारा फिर हम क्या और तुम भी क्या हो
जो यादें हैं इन लम्हों की उसमे जीवन काटा जाए
तेरे साथ बिताया एक दिन चार पहर में बंट न सकेगा
तेरी इक मुस्कान को आओ चार पहर में बांटा जाए

-


1 AUG 2020 AT 22:58

एक हद तक है मेरी सोच, कितनों से मिले
कुल जमा चार बेवकूफ़ मेरे जनाज़े में मिले

-


31 JUL 2020 AT 23:16

बवा का दौर है, सब हैं, अकेला मैं नहीं ग़ाफ़िल
न जाने खो दिया क्या ज़ौक़ जाने क्या किया हासिल
चला जाऊं जो एक दिन छोड़ कर सारी बलाएं फिर
शहर में पूछते फिरना क्या देखा है मेरा क़ातिल

-


30 JUL 2020 AT 21:59

वो मेरी बात करते या के मुझको गालियां देते
ज़हालत ठीक थी मुझको नज़र अंदाज़ ना करते

-


29 JUL 2020 AT 23:10

–– तख़ल्लुस ––

तख़ल्लुस चीज़ है क्या गर तुम्हे समझाना चाहें तो
खलिश है दिल की अक्सर जो ज़बाँ पे आ ही जाती है,
वज़ाहत उसकी अपने नज़रिये से नाप लो तुम ज़ौक़
वो मानो पीर-ए-बेमानी है, पेशानी पे रहती है

-


Fetching Praveen Quotes