If we could combine the curiosity of one year old with the imagination of 5 year old with the liabilities of 15 year old with the body of 25 year old with the strength of 35 year old with the commitment of 45 year old with the wealth of 55 year old with the self realization of 65 year old and forgetfulness of 75 years old, we would all become superhumans in our world
Women's day पर महिलाओं को आज हर दुकान में है छूट जो छूट उन्हें सच में चाहिए, वो कहीं छुपा दो, कहीं वो खुद ये सवाल न पूछ लें, उन्हें बाज़ार में ही भटका दो
ज़िंदादिली दिखती नहीं इस शहर में अब ज़हन में आया के इस शहर की मौत मुकम्मल कर दूं फिर एक तितली दिखी इसी बियाबां में फूल ढूंढते सोचता हूँ, इस शहर को थोड़ी और मोहलत दे दूं
पीली धूप का गाँव बसा बसंत ने ली अंगड़ाई है, बच्चों की किलकारी सुन के गौरइया बौराई है, फसल पक गयी खेतों में दम भरने को पुरवाई है, दोपहरी ने रोक दिया दिन चावल कढ़ी बनाई है, बाबा का हुक्का गरमाया आंगन खाट बिछाई है, आस पड़ोस के चाचा ताऊ बैठे तो बतकहाई है, कुँए पे देखो घूंघट काढ़े नयी बहू शरमाई है, खलिहानों में रौनक फिर से लगता है लौट आई है,
चार दिनों का साथ हमारा फिर हम क्या और तुम भी क्या हो जो यादें हैं इन लम्हों की उसमे जीवन काटा जाए तेरे साथ बिताया एक दिन चार पहर में बंट न सकेगा तेरी इक मुस्कान को आओ चार पहर में बांटा जाए
बवा का दौर है, सब हैं, अकेला मैं नहीं ग़ाफ़िल न जाने खो दिया क्या ज़ौक़ जाने क्या किया हासिल चला जाऊं जो एक दिन छोड़ कर सारी बलाएं फिर शहर में पूछते फिरना क्या देखा है मेरा क़ातिल
तख़ल्लुस चीज़ है क्या गर तुम्हे समझाना चाहें तो खलिश है दिल की अक्सर जो ज़बाँ पे आ ही जाती है, वज़ाहत उसकी अपने नज़रिये से नाप लो तुम ज़ौक़ वो मानो पीर-ए-बेमानी है, पेशानी पे रहती है