संकरी सी रस्सी पर
एक पांव के आगे
एक पांव लगा
चलती है ज़िन्दगी
कोई मजबूरी है
जो ये खेल दिखाना है
सिक्कों की खन खन से
घर चलाना है
सबका हो मनोरंजन
अचरज का जाल बिछाना है
सांस रोक कर चलता है बड़ा संभल
पर धंधे का उसूल सबकी धड़कनें बढ़ाना है
इसीलिए,
बीच रास्ते पर लड़खड़ाना है।
- Parbinva