जी चाहता है कुछ घड़ी तुम्हारे साथ बैठूं;
और बातों बातों में तुम्हारे सारे गम छीन लूँ,
जो तुम बचपन में खुद मारके मरहम लगाया करती थी;
मुझे रोता देख कैसे खुद को तुम कोसती थी,
क्यों खुद को तड़पा कर मेरी सारी ख्वाहिशें तुम आज भी पूरी करती हो;
क्यों मुझ पर एक छोटी खरोच देख कर भी तुम सहम जाती हो,
कैसे अपनी सारी खुशियाँ मुझ पर तुम न्योछावर कर देती हो;
मैं खुश रहूँ बस इसीलिए तुम घुट-घुट कर जी लेती हो,
कैसे अपनी ज़िंदगी कि सारी खुशियाँ तुम मुझसे जोड़ लेती हो;
कैसे मेरी कामयाबी को तुम अपना जीने का सहारा बना लेती हो,
ठीक है जिस ख़्वाहिश को तुमने अपने जीने का मकसद बना लिया;
लेकिन उसे पूरा करना मैंने अपना धर्म बना लिया,
लेकिन मेरी ख़्वाहिश तो तब पूरी होगी जब तुम्हे तुम्हारा स्वाभिमान लौटा दूँ;
तुम्हारे इस घुटन भरी वीरान ज़िंदगी को मैं गुलशन बना दूँ,
जी चाहता है कुछ घड़ी तुम्हारे साथ बैठूं;
और बातों बातों में तुम्हारे सारे गम छीन लूँ।।
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