Pratima Padhy  
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Joined 28 November 2017


Joined 28 November 2017
7 OCT 2023 AT 1:07

आख़िर वो भी किसी नस्से से कम नहीं...
यहां जिंदगी में उसकी लत क्या लगी,
वहां हम भी हर लम्हा अपनी बर्बादी की जसन मनाते दिखे...

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12 AUG 2021 AT 13:29

ख़ामोशी से आदत को नहीं
आदतों से ये ख़ामोशी मिली है...
दरिया से उभरके कहाँ
गहरायी में डूबके यहाँ ज़िन्दगी मिली है...

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23 MAY 2021 AT 23:45

चलो.. जो शुरू हुआ ही नहीं...
वो दास्ताँ को यहीं, ख़त्म हम करते हैं...
बाद में जाके बिखरना है क्यों,
बेहतर इस लम्हात, ज़रा टूट ही जातें हैं...

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11 APR 2021 AT 21:08

जब सिद्दत की कलम को वफाई की श्याही मिलने लगी...
तब कुछ कागज़ कोरें भी इबादत की नाम जपने लगी...
हालांकि उसकी निगाहें जो कभी वफ़ा करती ना थी,
वो भी इस दफा मुसाफिर-सौखीन सी बनने लगी...

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9 MAR 2021 AT 0:28

बस किसीके इंतज़ार में यूँ ही रातें गुरति रहती है...
और इन्ही सिलसिलों के चलते,
एक रोज़ इंतज़ार भी दम तोड़ देती है...

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7 MAR 2021 AT 22:33

आज तो एक क़तरा आंसू यूँ ही हमारे गालों को चूमते हुए जमीनसे जा टकराया,
जैसे ही माँ ने कहा की बेटा तेरे इस हस्सी में और वो सुकून की खुसबू बाकी ना रहा...

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1 MAR 2021 AT 21:56

अब तो बस कागज़ और कलम ही एक साहारा बनती,
जिसपे ज़िन्दगी की सच्चाई कायम हो पाती...
वरना होंठो पर बिखरी हुई वो मुस्कराहट भी झूटी,
और अल्फ़ाज़ों से ज़ाहिर हर इक़रार भी फ़रेबी...

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17 FEB 2021 AT 23:06

आखिर क्या खराबी है
मुझे मुझसा ही रहने में...
गर कभी तुझसा बन जाऊं,
तो शायद तुझे भी ना रास आऊँ...

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15 FEB 2021 AT 23:50

वक़्त का तो ज़िक्र क्या ही करें...
आज कल तो लोग
किनारे में रहके भी डूब जातें हैं...

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10 FEB 2021 AT 0:09

हमारा उनसे रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है
जैसे कुल्हड़ की वो आखरी घूंट वाली चाय...

जिससे मोहब्बत भी उतनी ही शिद्दत होती है
जितना की उसके ख़त्म हो जाने की वेबसि...

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