और इस कदर हमारा सारा कुछ पीछे छूट गया, ना तुमने कभी पलट के देखा और न मैने तुम्हे कभी रोका।
इश्क और दोस्ती का वो सारा मंजर बस एक छोटे से अंहकार के नीचे दब के रह गया।
अब तो ४ साल निकल गए, तुमने कभी उस दीवाने को पलट के भी नही देखा।-
किसने ये सोचा था, कभी ऐसा भी वक्त आएगा, एक घर में रहके भी लोग एक दूसरे से मिल ना पाएंगे, हर कोई अलग अलग कमरे में ही सीमित रह जायेंगे। एक दूसरे को देखने के लिए भी मास्क की जरूरत पड़ेगी।
किसने ये सोचा था, कभी ऐसा भी वक्त आएगा, लोगों की मौजूदगी के बावजूद अपनों के शव को आग देना भी नसीब ना होगा।
आस पास इतना दुःख है, वो देख के भी लोग कमजोर हो जाते हैं, ना जाने कब फिर से अच्छे दिन आयेंगे। कब हमलोग फिर से खुश हो पाएंगे।
देखते देखते सब ओझल होते जा रहा है, अपने पराए होते जा रहे हैं और पराए अपने। ये एक अजब सी लीला है, शायद धरती खुद की मरम्मत कर रही है।-
न जाने ये जिंदगी किस मोड़ पे आ गई है, कौन अपना रहा और कौन बेगाना इसकी भी समझ नही रही। चेहरों से ज्यादा मुखौटों की इज्जत है आज, न जाने कौन से युग में जी रहे हैं हम।
ना तो राम की ही सच्ची भक्ति बची अब और ना ही अल्लाह की सच्ची इबादत, बस सब पड़े है एक दूसरे को नीचा दिखाने, अब तो बस बची है तो सिर्फ राजनीति।-
तू मेरे हाल का खयाल मत रख प्यारे,
इसकी भी एक अलग ही शान है।
आप तो बेवफा और सीतमगर नहीं,
फिर आपने किस लिए मुंह फेर लिया।
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*बचपना*
बचपन के बचपने से वास्ता रक्खा हूँ आज भी
खुद से मिलने का रास्ता रक्खा हूँ आज भी
गुजरते लम्हों के समंदर में, डूबता वो बचपना
उसे उबारने में लगा हूँ आज भी
उम्र के पड़ाव में, हैं बहुत मसले
बेहतर है कि बचपन के याद में जरा हँस लें
दबा हुआ बचपना दिल के किसी कोने में
सिसकता रहता है
तोड़ कर हर दीवार बाहर आने को आतुर रहता है
-- Caption
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ख़मोशी से शिकायत भी रही है
ख़मोशी ही इश्क बन गई है
अभी किरदार आने हैं बहुत से
अभी आधी कहानी ही हुई है
अभी भी एक छोटी सी उम्मीद बची है
उसपे तो सुनते है दुनिया ही कायम है।
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क्यूं है ये बेचैन रात, न जाने किसकी यादों में करवटें बदल रहा है, आज तो चांद में भी वो कशिश नहीं है, जो कभी तेरे चेहरे में हुआ करती थी।
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वो सब होने के बाद, तेरी आंखों में कैसे देखता
गुनेहगार भले ही तू थी, फीर भी तेरी आंखों में कैसे देखता
शायद वो मेरी अटूट भरोसे और वफाई की भेंट थी
शायद वो मेरी अटूट भरोसे और वफाई की भेंट थी
वरना वो क्या चीज जो मेरे गुरुर को तोड़ सके।
पाक रिश्ते को जिसने नापाक कर दिया, उसकी आंखों में कैसे देखता।-
वक्त का ऐसा आलम आया, वो ही मुझे वीरान छोर गया जो कभी हमेशा मुझे दुआ में मांगता था।
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With the winter completely setting in, the warmth of the sun has vanished completely, seeing the sun high and wide has become a dream in this chilling winter. Sun, being hated in the dry summers is sort of being worshipped now.
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