वक्त कुछ मुश्किल थे,
थे गुस्से उनके अनचाहे,
लफ़्ज़ थोड़े से डरावने थे,
थे जज़्बात उनके बचकाने,
रिश्ते की एहमियत के आगे,
न जताया कोई ऐतराज तुमने,
एहसासों की इज़्जत के सामने,
न दिखाया कोई रौब तुमने,
सुबह की रोशनी में उनका दीदार करने की चाह रही,
या रात की चांदनी में अपने चांद की झलक की आस रही,
मुश्किलों में उन्हें सहारा देने की ज़िम्मेदारी रही,
या खुशियों को उनके दोगुना करने की परवाह रही,
कभी हाथ न छोड़ने के वादे किए,
तो कभी आख़री सांस तक की कसमें खाईं,
हर पल एक दूसरे को साथ आज़माया,
तो अपने हर लम्हे मे उन्हें याद किया,
पर एक झटके में झुलसा दिया उन्होंने,
एक मौके पर मुंह फेर लिया उन्होंने,
झुठला दिया तुम्हारे हर उस प्यार को,
लगा दिया तुमपे एक बुरे इंसान का ठप्पा,
फेंक दिया तुम्हारे हर उस फ़िक्र को,
बना दिया तुम्हें एक झूठ का प्रतीक,
पर,
"इश्क और मोहब्बत" में कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए,
"प्यार और कद्र" में कोई धुंधलापन नहीं रहनी चाहिए,
.......
.....
कहते हैं ना,
भरोसे पर पूरी दुनिया कायम है,
और भरोसा ही है,
जिससे रिश्तों की मज़बूती ज़ाहिर होती है।।।।।
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