कुछ इस तरह पुछे सवाल,
उस शोख़-मिजाज ने मुझ से,
हम ना अपनी बात छुपा सके
और ना ही पुरी बात बता सके।
बेखबर रहने का किरदार,
बखुबी निभा रहे हैं वो इक अरसे से,
के वो सब जान कर भी अनजान रहे,
और हम मजबूर थे, जो समझा ना सके।
बड़ी अनमोल चीज दीं उन्होंने
कल मुझे खैरात में, उनका वक्त,
ज़्यादा कुछ नहीं सिर्फ बातें हुई उस वक्त में,
इज़हार करने के लिए हिम्मत, हम जुटा ना सके।
क्या खूब लिखते हो ' अज़ल ' तुम,
और कितने वफादार हैं अशआर तुम्हारे,
सारी दुनिया को बता दिया उन्होंने तुम्हारा हाल-ए-दिल,
बस इक उन तक तुम्हारे जज़्बात पहुंचा ना सके....
- Azal.