Prateek Goyal  
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Joined 31 March 2017


Joined 31 March 2017
25 APR 2023 AT 0:08

हमें ख़बर है कि हवा तेज़ है,
तूफ़ान से मगर कहाँ परहेज़ है ?

सच-झूठ की क्या पड़ताल करें,
दिखा दो, खबर सनसनीखेज़ है |

गद्दी से कोई इन्हें हिलाये कैसे?
झूठ-ओ-नफ़रत से सजाई सेज़ है |

इतिहास मरोड़ने वालों को नहीं पता,
इतिहास में वो खुद एक पेज है|

किरायेदार खुद को मालिक समझ बैठे हैं,
सनद रहे, ये ताक़त भी एक फेज है |

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24 NOV 2022 AT 10:08

दुनिया में आप जैसा न आता कोई,
मुद्दतों में दीप ऐसा जगमगाता कोई |

नन्हीं आँखों में ख़्वाब रोशन रखने को,
यूँ बरसों खुद को न जलाता कोई |

जिस दौर में कई चेहरे रखने का रिवाज़ हो,
सरल मुस्कान ओढ़े, प्रेम धुन गुनगुनाता कोई |

काश समय को भी तो मोड़ पाता कोई,
काश दीपों को फिर से जलाता कोई |

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7 SEP 2022 AT 11:48

पलकों के नीचे, मुद्दतों से हमारा, इक आशियाना रहा,
अधरों पे उनके, कोई खूबसूरत, जैसे तराना रहा |

अदायें जो सारी, यूँ बाँधे रखी हो, वाकिफ़ है सारा जहाँ,
ज़ुल्फ़ें झटक के, बदल दो ये मौसम, क्या आज़माना रहा?

होली का रंग है, वो ईदी का चन्दा, माघ की वो है बहार,
दिवाली को रुख़ से, जगमग शहर था, क्या शम्मे जलाना रहा?

अनूठी वो जंग थी, निहत्थे खड़े हम, उधर दो नैन कटार,
नैना सवारी, को ले उड़ चले, अब क्या लड़ना-लड़ाना रहा?

शोख़ अदाओं, की दीवानी ये कुदरत, छिप कर करे आशिक़ी,
हवायें जो गर्दन, छू कर के निकली, झुमका बहाना रहा |

दुनिया के कानों, में पड़ा ये तराना, माना न कोई यहाँ,
आठ अजूबों के, दुनिया में चर्चे, नवाँ फ़साना रहा |

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20 AUG 2022 AT 18:39

बेवफ़ाई ने कुछ इस तरह मेरा शिकार किया,
मेरी पीठ ने ही ख़ंजर को ख़बरदार किया |

कुछ पल के लिए ही मेरी निग़ाह हटी थी, कि उसने,
मेरे बाग़ के फूल से अपना आँगन गुलज़ार किया |

दुश्मन हैं? यार हैं? मुफ़लिस हैं? मालदार हैं?
ये कौन हैं जिसने मेरे राज़ को अख़बार किया?

ये ज़हर कहाँ मुझे मारने की ताक़त रखता था?
तेरी मोहब्बत थी, जो इस क़दर असरदार किया |

मैं तो साहिल पे खड़ा, नयी सुबह की ताक में था,
न जाने किसने मेरी कश्ती को मझधार किया |

इक रोज़ चौराहे पर वो चार आँखें फिर टकराई,
मुझे मेरी ही ज़लालत का, उसने सूत्रधार किया |

आख़िरी एहसान से उसने धोखे की आबरू रख ली,
एक ज़ाहिल को यूँ ही शब्दों का फ़नकार किया |

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13 JUL 2022 AT 19:27

इश्क़-मोहब्बत, धर्म-ओ-जन्नत, कहने को सब धोखा है,
तुम भी भरो गिलास बराबर, तुमको किसने रोका है ?

रफ़्ता रफ़्ता लो कदम तुम, आसमान तक सीढ़ी है,
उससे ऊँचे ख़्वाब बुनो तुम, आज प्यारे मौका है |

चिंतन-विवेचन गूढ़ यहाँ, पन्ना-धाय हो या टॉलस्टॉय,
होश में अक़्ल एक रन बराबर, मदहोश हुए तो चौका है |

बहता चल तू खुद की धुन में, क्या ढूँढता है साहिल,
डूब जाना इसी गिलास में, नहीं कहीं कोई नौका है |

देखूँ मैं हर रोज़ मुसाफ़िर, भटके सारे मंदिर-मस्जिद,
थका हारा वो ले मुराद, मधु के चरणों में लोटा है |

खेल के यहाँ उसूल अलग हैं, अंतिम बाज़ी बेशक़ीमती,
अन्तिम पेग है लाख बराबर, अंतिम घूँट तो ख़ोख़ा है |

एक महबूब की आँख में, दूजा पैमाना हाथ में,
दो ही दरिया डूबने क़ाबिल, संगम-वंगम छोटा है |

एक प्याले से पीते थे जो, दोस्त रहे अब 'यार' नहीं,
उन जैसा मैं मसरूफ़ नहीं, मेरा कद ज़रा छोटा है |

वो दूत भी हैं ग़लत कहाँ, जो मय को नापाक बताते हैं,
बाँटो प्रसाद भोले का, कहो "शुक्रिया, जो टोका है | "

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7 JUL 2022 AT 0:45

शहर में मेरे एक से बढ़कर एक सयाने लोग,
कपट का है रोग बड़ा, या बड़े सयाने लोग |

ईंट ईंट पे सींच पसीना, घर अपना बनवाते हैं,
दूजे घर देखा बुलडोज़र, नाचे खूब सयाने लोग |

अपने बच्चों की शिक्षा पर, धन-दौलत सब न्यौछावर,
हिज़ाब को लेकर छीनें क़िताब, वही सयाने लोग |

ईशनिंदा पे सज़ा की, ज़िम्मेवारी ले बैठे हैं,
नहीं कमी किसी धर्म में, हर धर्म में सयाने लोग |

रामराज्य लाने को आतुर, सदियाँ पीछे ले गए देश,
नंगा नाच हो भीड़तंत्र का, ढोल बजाते सयाने लोग |

सम्मोहक के आईने में, ये खुद को रानी पाते हैं,
सियासी शतरंज के बौने प्यादे मात्र सयाने लोग |

झूठ-ओ-नफ़रत के घी में सिकती, धर्मरक्षा की ठेकेदारी,
राम-रहीम सब 'आत्मनिर्भर', नहीं चाहिए सयाने लोग |

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25 JUN 2022 AT 17:41

पत्थर पत्थर ढूँढी मूरत, पत्थर में जज़्बात भी तो हो,
मैं कैसे मानूँ भगवान को, भगवान वाली बात भी तो हो |

मासूम गले घोंट कर के, कोई ऊँची उड़ान भरता है,
दर-दर भटके न्याय को चिड़िया, बाज़ों को हवालात भी तो हो |

बारी बारी राजाओं से जो सत्ता चक्र घूमता जावे,
नेकी की बादशाहत हो, ऐसी शह और मात भी तो हो |

पाप-पुण्य और जन्मो-जनम, किसने देखा, किसने जाना,
कर्मो फल हो इसी जनम में, ऐसी सीधी बात भी तो हो |

छीन सके बेवक़्त किसी को, इस ताक़त पे क्या इतराये है?
आँखैं जो मूँदूं मैं कभी, फिर से सर पे वो हाथ भी तो हो |

लोग तेरी चालों को मेरी समझ से ऊँचा बतलाए हैं, मगर,
खेल का कोई उसूल हो, कहीं पर बिछी बिसात भी तो हो |

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27 APR 2022 AT 0:39

रंगमंच के जादूगर ने ऐसा खेल रचाया है,
भिन्न-भिन्न किरदारों को आसमां से टपकाया है |

कोई गिरता कश्ती पर, किसी को मिला जहाज बड़ा,
ज़्यादातर को तो उसने, समंदर में ही कुदाया है |

इक-दूजे का हाथ पकड़ ये लहरों से टकरा जाते हैं ,
एकला कहाँ कोई इंसान, जहाँ में टिक पाया है |

इश्क़-मोहब्बत, जलन, धोखा, सब इल्मों का इलाज़ यहाँ,
जादूगर ने कोने कोने मयख़ाना खुलवाया है |

जान सका न पात्र कोई कि सबका मालिक एक ही,
अपने अपने जादूगर के लिए बेकार लहू बहाया है |

किसी की तैराकी ने उसे कश्ती पर जा चढ़ा दिया,
कोई अपनी ही नाव में छेद कर गिर आया है |

जहाजी खड़ा गुमान में, रहा अनजान इस बात से,
उसके किरदार का मुक़ाबला तूफ़ान से करवाया है |

अन्त पन्त सब डूब जाना, आना अकेले, जाना अकेले,
किरदारों को तो रिश्तों का, कोरा भ्रम पलवाया है |

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12 DEC 2021 AT 1:44

इस lesser half की कुछ यूं better half हो,
अधूरे से सुर की जैसे पूरक सी इक साज़ हो।

यूं जमीं पर आजकल ये पैर कहां ठहरते हैं,
नए नए से पर हैं मेरे, नई नई परवाज़ हो।

जेहन को मेरे हर वकत इक तस्वीर छेड़ा करती है,
अधूरी मेरी हर गजल की आखिरी अल्फाज़ हो।

तकदीरें भी क्या बताओ ऐसे लिखी जाती हैं?
सेहराओं में खुदा ने, बनाया जैसे बाग हो।

खुदा ने भी देखो क्या अद्भुत खेल रचाया है?
ज़माने में नाज़ हो मेरी, तुम ही मेरा राज़ हो।

वक्त से मैं क्यूं डरूं अब, तुम जो मेरे साथ हो,
हँसी हो मेरी तुम खुशी में, गम में मेरी आस हो।

कल थी मेरी, कल रहोगी, तुम ही मेरा आज हो,
जिंदगी की नई सुबह का खूबसूरत आगाज़ हो।

क्या बताऊँ किस कदर अब तुम हमारे पास हो,
साँस जो मैं लूँ अगर तो साँस का एहसास हो।

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6 JUN 2021 AT 22:28

क्यूं न इन आंखों को तुम पर्दे छुपा लो,
तुम इनके कहर से शहर को बचा लो

इक रोज़ निकली जब वो काजल लगाए,
इनकी तपिश में, जले भी हैं साये,

जो घायल हो दिल, उन्हें क्या बचाना,
ना जादू ना टोना, ना है दवाखाना,

ये चंदा, ये तारे, नशीली हवायें,
हुकूमत में इनकी हैं गर्दन झुकाए,

क्या खूब इनकी देखो मेहमां नवाज़ी,
डुबो भी लें ये, ना नौका, ना मांझी,

नज़र जो मिली, वो तो हम जानते हैं,
खुद को शराबी अब हम मानते हैं,

एकटक देख लो, मुझे काफ़िर बना लो,
मगर इनके कहर से शहर को बचा लो।

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