उसके बारे मे कोई सवाल-जवाब न करे,
इसका मतलब कोई उसे बे-नक़ाब न करे...
फर्क़ नहीं है उसके होने-न होने में,
जो न एहसान देखे, एहतिसाब न करे...
अपने रहम-ओ-करमगार को ही आँख दिखाए,
खुदा किसी को इतना भी इंतिसाब न करे...
उसे खुश रहना है तो बस इतनी दुआ करे,
कि गलती से भी खुदा, उसका हिसाब न करे...
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हर गम को एक सुकून, बनाया है आपने,
नफरतों का, प्यार का, दोनों... read more
बिन माली के बगिया सींचे, कोंपल नहीं खिला करती हैं,
अपनी आहे अपने दिल से, फिर ता-उम्र गिला करती हैं,
हमसफ़र हो अच्छा, सफर हो अच्छा, पर अपनों का साथ न हो,
रस्ता कितना भी असां हो, मंजिल नहीं मिला करती है..
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कुछ नई उम्मीदें जाग उठीं, एक नया जोश भरमाया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....
कुछ सपनो को पंख मिले, कुछ मगर अधूरे होंगे,
सब पर मेरा विश्वास है ये, इस वर्ष सभी पूरे होंगे..
एक स्वप्न ने अंगडाई ली है, एक ख्वाब फिर से इतराया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....
इस वर्ष नए आयाम छुओ, संघर्ष तुम्हे मंगलमय हो,
अम्बर भर की खुशियों के संग, नव वर्ष तुम्हे मंगलमय हो..
जनवरी है खोले हाथ खड़ी, दिसंबर फिर से बिसराया है,
एक वर्ष और बीता तो क्या, एक वर्ष नया फिर आया है....-
जो गुरु नानक के चरणों में, रहकर रोहन बन जाता है,
जब देश हो वित्त के संकट में, संकटमोचन बन जाता है,
हर प्रश्नो को, इल्ज़ामो को, और बेबुनियाद से तर्कों को,
एक मुस्कान से जो खामोश करे, वो 'मनमोहन' बन जाता है...
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तुम मुझमें बसती हो जैसे, राम के मन में सीता हो,
लगा कि तुमको पाकर जैसे, मैंने ये जग जीता हो,
संग तुम्हारे याद संजोते, वक़्त प्रवाहित हुआ है यूँ,
साल हैं दो-दो गुज़र गए और, लगता एक दिन बीता हो..-
हवा से रोज मिलना है, और मिलकर छूट जाना है,
दरख़्तों की बुरी किस्मत, समय का रूठ जाना है,
जड़ों के साथ रहना है, तो नभ में लहलहाना है,
जड़ों से दूर होते ही, बिखरकर टूट जाना है...-
समझ नहीं आती है लेकिन बात जरा सी रहती है,
उसके मन में सारा दिन घनघोर उदासी रहती है,
तभी समन्दर रो-रो कर खुद को खारा कर लेता है,
एक चाँद के चक्कर मे क्यूँ, नदिया प्यासी रहती है....-
खुद से सारे वादे तोड़े, खुद के दिल को तोड़ दिया,
कर्त्तव्यों के पथ पर हमने, खुद ही मन को मोड़ दिया,
प्रश्न उठा जब शौक से खुद के, खुद समझौता करने का,
मजबूरी को शौक बनाया, शौक से घर को छोड़ दिया...-
हर दिन डर, बड़ा-सा हो रहा है,
और फिर दिल, रुआँसा हो रहा है..
मौत सस्ती पे सस्ती हो रही है,
ज़िन्दगी का खुलासा हो रहा है..
पटरियां, चौसर के माफिक बिछ रहीं हैं,
निजाम, शकुनी का पासा हो रहा है..
कड़ी निंदा तो उनकी बेबसी है,
उन्हें ना गम जरा-सा हो रहा है..
फ़क़त वादों पे वादे मिल रहे हैं,
तमाशे पर तमाशा हो रहा है..
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जीवन के संघर्ष में सारे, स्वप्न गए और मीत गई,
प्यार के सारे कसमें-वादे, इश्क की सारी रीत गई,
युद्ध हुआ जब जिम्मेदारी और मन की इच्छाओं में,
इच्छाएं सब हार गई और जिम्मेदारी जीत गई....-