मैं जब इक अर्से से खामोश होता हूँ ,
तो सोचता हूं कि अब क्या लिखूँगा !
फिर सोचता हूँ अपनी पिछली मुलाक़ातों को ,
ओ सोचता हूँ कि अब क्या मिलूंगा !
गले, दिल , नजरे , जुबां
सब मिल चुके है पहले ही ,
फिर जेहन दिल तक आके कहता है
कम से कम इस बार तो मैं ' तुमसे ' मिलूंगा !
-