Prashant Pathak   (The frozen_ink©)
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Joined 22 January 2017


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Joined 22 January 2017
30 MAR 2017 AT 14:18


तक़दीर पर यक़ीन बेशक हिस्सा-ए-ईमान है साहब
हर नाकामी को लेकिन मुक़द्दर नही कहते

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2 DEC 2018 AT 13:18

कुछ नए शब्द लाया हूँ
किताबों से तराशकर
तुम्हारे लिए
कहो तो पिरो दूँ?
मुमकिन कहाँ है
सबका तुम्हें
मुझ जैसा देख पाना,
पर बनेगी जब
ये शब्दमाला,
कितनी खूबसूरत लगोगी
शब्दों के सुंदर लिवास में।
और फ़िर सब पहचान लेंगे तुम्हें
मेरे शब्दों में...
कुछ नए शब्द लाया हूँ,
किताबों से तराशकर
तुम्हारे लिए
कहो तो पिरो दूँ?

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30 NOV 2018 AT 1:33

मैं भी तन्हा
और तुम भी।
खुद में डूबे,
खोए-खोए।
इस गहरी रात की उदासी
क्यों न मिलकर बाँट ले हम
और भूला दें वो सारे गीले-शिकवे
एक नई सुबह के लिए।

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30 NOV 2018 AT 1:21

कुछ व्यर्थ से शब्द
लंबे अरसे से
हलक में फंसे हुए हैं।
कि इक रोज़ अगर तुम सुन लो
तो शायद इन्हें अर्थ मिले
और मुझे सुकूँ।

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30 NOV 2018 AT 1:15

सारे सवाल,
जवाबों की तलाश में नहीं निकलते

कुछ सवाल
बिछाकर पीठ अपनी
पुल बांधते हैं

ताकि पार उतर सकें वो जवाब
जो कभी दिए नहीं जा सकते।

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18 NOV 2018 AT 20:03

तुम ठहरना मेरे साथ
जब वक़्त गुज़र रहा हो
मुझे छोड़ कर..

तुम ठहरना मेरे साथ
जब भाग्य गुज़र रहा हो
मुझे छोड़ कर..

तुम ठहरना मेरे साथ
जब सुख गुज़र रहा हो
मुझे छोड़ कर..

तुम ठहरना मेरे साथ
जब सब गुज़र जाएं
मुझे छोड़ कर..

क्योंकि
मैं ठहर चुका हूं अब
तुम्हारे जीवन में
सब-कुछ छोड़ कर

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12 NOV 2018 AT 18:29

जब कई बातें जिगर को नोचती हैं
सिगरेटें कतरा कतरा राख होती हैं

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1 NOV 2018 AT 16:58

खत तो लिख दिया अब पता क्या लिखे बेटी
पिता ने शादी की थी तब मकान बेच दिया था

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24 OCT 2018 AT 0:53

सुनो!

मालूम है तुम्हें? ये आंखे जिनसे देखती हो तुम मुझको..चाहत है मेरी इनके सामने से कभी न हटूं!

वक़्त-बेवक़्त जब भी कभी तुम्हारे सामने गम दस्तक दे तो तुरंत तुम्हें अपनी बांहों में महफूज़ कर लूं!

रोकूं तुमको तुम्हारी लम्बी-लम्बी मुस्कराती बातों के बीच और अचानक से तुम्हारे माथे को चूम लूं!

हम दोनों जब चले जा रहे हों एक लंबी राह पर तो आखिरी मोड़ तक ना छूटे हमारे हाँथ, अपनी उंगलियों को इस कदर तुम्हारी उंगलियों से उलझा लूं!

धीरे से जो कहीं हवा का झोंका भी आ जाए तो तुम्हारे उड़ते हुए बालों को, बड़ी हिम्मत करके अपनी उंगलियों से सुधार दूँ!

जब पूरी दुनिया तुम्हारी खिलाफत करे उस वक़्त बिना कुछ सोचें समझे मै तुम्हारा साथ रहूँ!

टूटती सांसों के आखिरी क्षण तक तुम्हें प्रेम करूँ, और सिर्फ तुम्हरा ही रहूँ!

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24 OCT 2018 AT 0:46

'अच्छा वक़्त आने में
कितनी देर लग गई।'
जब भी वो ऐसे कहती हैं,
मैं समझ जाता हूँ
उस रात के अँधेरे में,
मुझे दिया बन कर जलना हैं।

जब मैं नही था,
तो न जाने, कितने दफे
वो खोई होगी,
उसे रात के अँधेरे में।
और मेरे होने के बाद भी,
कितने दफे बिना कहे,
वो सोई होगी जागते हुए।

जब कभी,
गुजरा वक़्त सताता हैं उसे।
मुझे वो रात बड़ी सताती हैं।
लेकिन मैं कोशिश करता हूँ,
ये बात मैं जाहिर ना होने दूँ।

और जब वो सो जाती हैं,
मैं सोचता हूँ उसे,
और
वो कह रही होती हैं,

"काश तू अभी यहाँ होता।"

दिया भी तो ऐसा ही होता हैं,
किसी का अँधेरा दूर करने को,
जलना तो पड़ता ही हैं।

मैं तुम्हारा दिया हूँ,
तुम्हे अँधेरे से बचाने के लिए,
मुझे दिया बन कर जलना,
अच्छा लगता हैं।

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