PRASHANT   (©Rudraks)
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Joined 5 August 2017


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21 MAR 2022 AT 23:26

हम नही जाते
इस जन्म के दरवाजों को लांघकर उस जन्म तक
हम नही देख पाते भावनाओं की दुनिया
हमे नही होती रूह से मोहब्बत
चीख रहे हैं कोई सुने
हमें नही होती रूह से मोहब्बत

हमें चाहिये पत्थर तराशने वाले
जिनके पास छैनी हो, हथौड़ा भी
जो प्रहार करते रहें
पत्थरों के अणुओं से बने वजूद पर
जब तक की हम सुंदर नही हो जाते
इसी दुनिया में।— % &

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13 FEB 2022 AT 12:48

.❤️.— % &

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24 JAN 2022 AT 20:02

ना तेरी पहली छुअन न आखिरी मोहब्बत बन पाए
लाजमी है ऐसे शख्स को भुला दिया जाए।

फिक्रमंद हैं खुद की खातिर तेरे जाने के बाद
कोई आए भी तो जिस्म दिया जाए, दिल न दिया जाए।

रूह, सुकून, हयात लोगों में न तलाशें
जिंदगी है , इसे सच की जमीं पर चलने दिया जाए।

खुदगर्ज सा इश्क में सबको भुलाना, नहीं नहीं
मोहब्बत सबसे हो, सबको अपना हिस्सा दिया जाए।

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5 JUL 2021 AT 20:29

वाजिब सवालों की फेहरिस्त में ये भी लाजमी हो

कि निगाह उठे तो "सवाल" कैसे, झुके तो "जवाब" कैसे?

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1 JUL 2021 AT 20:49

मगर क्या उसके पास बची है
वो बातों भरी रातें
वो जिंदगी से भरी हुई बातें
वो हंसने ना की मजाक बनाने वाली बातें
वो सहजता जिनमें हो सके रोने वाली बातें

शायद ऐसा हो
नहीं नहीं शायद वैसा हो
हां वैसा ही होगा
समय ने समय बदल दिया उन बातों का
सोच ने तात्पर्य बदल दिया उन बातों का
हां अनुभवों ने बदल दी हैं हम दोनों की बातें
इन बातों के साथ खो दी है
हमने अपने जैसी बातें।

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1 JUN 2021 AT 0:19

चांद, संगमरमर, या की जिस्म की बात
सब........... मिट्टी है

सवाल ये है नजर में कितने आए
और तराशे गए कितने ।।

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31 MAY 2021 AT 23:38

तवक़्क़ु'आत ऐसे कि रुके, पलटे, देखे वो गौर से
बेगर्ज ऐसे की उसके आगे ही चल पड़े।

चाहा था एक बार हमकदम भी होना उससे
जमीर ऐसा कि नहीं मुड़े - तो---फिर नही मुड़े।

लकीरें, बेदिली, अना कुछ भी बना लो वजह
हमबिस्तर भी हुए मगर दिल नहीं जुड़े।

जिस्म तराशा था उसका ये सच है मगर
कुछ दाग भी थे मगर नुक्ते में क्यूं पड़ें।

तमाम वक्त है सोचा जाए की क्या था हमारे दर्मियां
छोड़ो भी आखिर जिंदगी है झंझट में क्यों पड़ें।।

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31 MAY 2021 AT 0:22

जन्नत, असरा, इरम, हूरें ना जाने क्या क्या
खुदा की नेमतें भी सियासत के बड़े दांव सी क्यूं हैं।

फूल, इत्र, सिजदे जाने क्या क्या शौक
शौक खुदा में भी आखिर इंसान से क्यूं हैं।

तयशुदा दिन महीने भी रखें है अर्ज़ सुनने को
कुछ ऐसे मामलात आखिर चुनाव से क्यूं हैं।

आखिर कुछ तो बुरा हो बुरा करने पे
ये माफ करने के तरीके बेईमान से क्यूं हैं।

कहां हो, कैसे हो, कुछ तो बता दो
ये तुम तक पहुंचने के रवैये अफशरशाह से क्यूं हैं।

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28 MAY 2021 AT 1:01

स्त्रीत्व की महानता शुद्ध है
खरे सोने की भांति;
जो नही स्वीकारती कोई दोषारोपण।
जिसका आरोप है।
पुरुष दंभी है।
अपराधी है।
जिसने केवल कुचला है स्त्रीत्व को
और उसकी महानता का खरापन
और उसकी अस्मिता को।
नेपथ्य में भी और सम्मुख भी
पुरुष ने झुठलाई है स्त्री की श्रेष्ठता।

अब मैं सोचता हूं
क्या आरोपी दोषी होता है
क्या नेपथ्य और सम्मुख में कोई भेद नहीं
और मैने सोचा अपनी बेटियों में से
एक का नाम "मुलान" ।।

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24 MAR 2021 AT 22:17

कई कासे हैं मिट्टी के, कई सोनो में ढाले हैं
मगर अफसोस है सारे हवस के ही हवाले हैं।

हुक़ूमत कर रही सिजदे रईसों की जमातों की
यहां कुछ हाथ में तो बस गिनती के निवाले हैं।

कटेंगे धान हंसिये से, कि छैनी "राम" ढालेंगे
मगर आवाज गर उठे सभी आतंक वाले हैं।

दंगाई हो, गद्दार या लुटेरा आबरू का हो
अगर सत्ता में शामिल हैं तो सब बेदाग वाले हैं।

तुम्हारे वास्ते चादर बिछाई रेशमी हमने
गिराएंगे तुम्हे मुँहबल, के हम अफरोज वाले है।

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