Prashant Devgun   (चराग)
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Joined 7 March 2018


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Joined 7 March 2018
23 APR AT 21:52

एक बादल-सा है जो छटता नहीं है,
एक ग़म है मेरा जो घटता नहीं है !

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16 APR AT 4:35

है चुभे तीर से दो वे आखर मुझे,
के कहा यार ने आज पाथर मुझे !

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15 APR AT 23:37

कहूँ मैं आप अब या तू कहूँ तुम्हें,
कहूँ या जान ए मन , माह-रू तुम्हें !

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11 APR AT 8:50

है ज़िंदगी क्या और मसाफ़त से ज़्यादा !
जाती है गुजर ये भी तो आने-जाने में !!

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8 APR AT 0:06

के आओ तो दिल-ओ-बाँहें खोल कर के आओ,
है मंज़ूर नहीं इकतरफ़ा त’अल्लुक मुझ को !

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7 APR AT 12:35

ख़ुद को भूले बस उस को याद किया,
हमने ख़ुद को बस यूँ बर्बाद किया !

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6 APR AT 19:57

देखो हटा कर के पर्दे शर्मो हया के ,
है इश्क़ में भला क्या काम तकल्लुफ़ों का !

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4 APR AT 21:16

के हर घड़ी-घड़ी मुझ पे हक़ जताना तुम,
चलो कभी-कभी मुझ से रूठ जाना तुम !

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2 APR AT 23:58

निकला आँख से , कभी बयाँ में आ गया !
दर्द हद से गुज़रा तो फ़ुग़ाँ में आ गया !

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27 MAR AT 7:48

उतर जाएँगे रंग ये तो दो इक दिन बाद को आख़िर,
नहीं उतरे है जाने रूह से रंग उस का क्यों आख़िर !

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