खिल उठे पुहुप सारे,उपवन भी हरषा गये
मानो प्रकृति से मिलने,खुद मन्मथ आ गये
हर पात झूमने लगा,खुशबू वात संग बहने लगी
कोयल भी गीत गाकर जैसे कान मे कुछ कहने लगी
हरीतिमा सी छा गयी,और दरख़्त लहरा गये
ढाक के वो पलाश फिर से बसन्त लेकर आ गये
हरियाली भी इस धरा से जैसे बेहद प्यार करने लगी
ऐसा लगता है मानो प्रकृति खुद श्रृंगार करने लगी
खुशियाँ सारी मिल गयी और गम सारे मुरझा गये
खिल उठा ये जीवन जब से तुम हो इसमे आ गये।
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