अपने हक़ के लिए मैं, फिर भी कभी लड़ा नहीं,
नज़र अंदाज होता गया, फिर भी कोई गिला नहीं।
इक अरसा हो गया , खुद से कभी मिला नही।
आया बहुत तूफ़ान जिंदगी में, फिर भी कभी हिला नही।
ये जिंदगी दो चार दिन की है, हमेशा का सिलसिला नही,
मैं अकेला हीं काफ़ी हूं शहर में, मेरे पीछे कोई काफ़िला नहीं।
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