Prakhar Malviya   (Kanha)
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Young age urdu poet
Joined 7 March 2017


Young age urdu poet
Joined 7 March 2017
25 JAN 2022 AT 0:30

ख़ला को छू के आना चाहता हूँ
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ

मेरी ख़्वाहिश तुझे पाना नहीं है
ज़रा सा हक़ जताना चाहता हूँ
कान्हा

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24 JAN 2022 AT 3:01

बिछड़ना इसलिए दुश्वार हो जाता है मुझको
अचानक अजनबी होना नहीं आता है मुझको

Shariq Kaifi

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6 OCT 2020 AT 2:32

बेअसर हो के ये दुआ ने कहा
तेरे हिस्से में तो ख़ुदा ही नहीं

कान्हा

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26 JUL 2020 AT 15:34

बदन को और तोड़ेगा
यूँ बिस्तर पर पड़े रहना

हैं ख़ुश आँखों को मूंदे हम
है अच्छा यूँ छुपे रहना

हमारे डूबने तक तुम
किनारे पर खड़े रहना

नहीं है जो तिरा ' कान्हा '
उसी का क्यूँ बने रहना ?

Kanha

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26 JUN 2020 AT 22:20

अपनी क़िस्मत में सभी कुछ था मगर फूल न थे
तुम अगर फूल न होते तो हमारे होते

नादिर अरीज़

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24 JUN 2020 AT 21:26

नए दिन में नए किरदार में हूँ
मेरा अपना कोई चेहरा नहीं है

कान्हा

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13 JUN 2020 AT 2:12

अब तलक ये समझ न पाये हम
ग़म तेरा क्यूँ ख़रीद लाये हम

इक हवेली थी मोम की अपनी
छत पे सूरज उतार लाये हम

अब भी बेवक़्त मुस्कुराते हैं
तेरे हाथों के गुदगुदाये हम

कान्हा

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7 JUN 2020 AT 20:25

जंग में अक़्ल से अधिक ग़ुस्सा
सिर्फ़ दुश्मन के काम आता है

جنگ میں عقل سے ادھک غصّہ
صرف دشمن کے کام آتا ہے

Kanha

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7 JUN 2020 AT 15:50

हल करने से डरता हूँ
सब आसान सवालों को

लहरें देखती रहती हैं
दरिया देखने वालों को

ज़ुल्फ़ें इनसे दूर ना कर
ख़ुश रहने दे गालों को

कान्हा

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31 MAY 2020 AT 0:53

हरीफ़ों से मिले रहना
अज़ीज़म भी बने रहना

हैं ख़ुश आँखों को मूंदे हम
है अच्छा यूँ छुपे रहना

हमारे डूबने तक तुम
किनारे पर खड़े रहना

नहीं है जो तिरा ' कान्हा '
उसी का क्यूँ बने रहना ?
Kanha

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