ये तो ज़िन्दगी का एक खेला है ताउम्र मैं बस अपने कल को ही संवारने में लगा रहा लेकिन.... कब उसका बुलावा आया और मैं बीच में ही सब छोड़ चल दिया बस ...... इस बात के अफ़सोस के साथ, कि ज़िन्दगी तो मैने जी ही नही थी, कभी।
की मंजिलें खुद ब खुद चलकर नही आया करती है मैं तो बस एक ज़रिया उन मंजिलों तक पहुंचाने का लेकिन.... तुम्हारी मंज़िल किस ओर है, ये तुम्हे खुद ही तय करना होगा।
कौन कहता है, जिसकी किस्मत चमकती है तो छप्पर फाड़कर देती है??? लेकिन..... कोई ये क्यों नही कहता की, उसी किस्मत को बनाए रखने के लिए काम भी करना होता है। क्योंकि..... यूं नही किस्मत किसी पर मेहरबान हुआ करती !!!
ना की दिखावे से होती है लोग अक्सर दिखावे का मुखौटा लगाए महान दिखने की कोशिशें करते है लेकिन...... वो ये भूल जाते है की मुखौटा कोई भी ज्यादा समय तक नही लगा सकता और..... एक समय ऐसा भी होता जब आप क्या ये जग ज़ाहिर हो ही जाता है।
जो अगर इसका मंत्र बना लिया जाए तो मुश्किलें कितनी ही आए, मगर उठ खड़े होने का जज़्बा दिल में आ जाए तो पत्थर फेंकने वाले तो, बहुत मिल जायेंगे, तुझे राहों में लेकिन.... उन्ही पत्थरों से अपना रास्ता बनाने वाला, बन जाए अगर तो, जीत मुश्किल नहीं फिर.......
किसी की, अपने आपको थोड़ा समझदारी और आपसदारी की भट्टी में तपाना पड़ता है, उसके बाद भी ऐसे बहुत से ना जाने कितनी ही परीक्षा का सामना करना पड़ता है तब जाके कही निखरती है पहचान की बुनियाद
वही, जो लोग अपने आचरण से, पहले से ही ऐसे हो, उनको किसी पहचान की जरूरत नही पड़ती।
वो एक ख़्वाब जो मैने अपने लिए देखा था कभी लेकिन..... आज भी एक उम्मीद बाकी है मुझमें कहीं, की एक कोशिश तो करूं उसके लिए भी जो..... हाथ से मेरे निकल गया था कभी।
हर मुसाफिर अकेला ही होता है और अकेला ही जाता है, वो लाख चाहे कितने ही रिश्तों के झमेले में उलझा रहें ताउम्र, लेकिन..... इस सफ़र के अंतिम पड़ाव को उसे अकेले ही तय करना पड़ता हैं।