12 AUG 2017 AT 13:07

//कोक में संवाद//

रो पड़ी वो नन्ही जान,कोक की खामोशीं में;
पल भर की तेरी ज़िंदगी,जी ले तू जी भर के।
कर ले सारी मनमानी....तेरे उसी घर में;
हैं तेरी मां भी पराई, अपने ही घर में।

ढुंढ रही है अपना घर;
हैं मायका? या हैं ससूराल?
हैं र्मूगी? या अंडा पहले?...
हैं धोबी के गधे जैसा, उसका हाल।

गड़बड़ की दुनिया अपनी,
घोर कलयुग में हैं जीना।
हिम्मत न हार तूं कभी,
बस कर ले पहला पड़ाव पार।

तेरे आने से खुश तो होंगे "कई",
कुछ "कई",दुख हाल....
खुशी में तेरे बटेंगे तो "जलेबी"
और हाथ में तेरे पावें गुड़ीया।

हर बोली,हर भेष,हर हरकत की देना जवाब।
हैं घोर कलयुग में जीना।
और जीयेगी तू जी भर के यहां।









- Dr. Penumbra