8 AUG 2017 AT 19:15

मुसाफिर हूँ यारों बस चलना आता है
ना रुकना ना ठहरना आता है।
कविताओं और कहानियों का तो मुझे पता नहीं
बस दो चार शब्दों को पिरोना आता है।।

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