जब कभी सुन्न पड़ी शाम, वीरान राहों
पे निकलता हूँ ,अचानक उसकी खुशबुएँ
गमक उठती है,तन बदन खिल उठता है,
ऐसा लगता है पास से गुजरी हो वो,,
फिज़ाओं में उसकी रंगतों का असर
कुछ यूं होता है......
लगता है आ गई हो वो....
वो देर तक खुशबुएँ,
वो देर तक नुमाइश,
वो मासूम सी अदा,.....
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फिर वही तनहाई ,
फिर वही एहसास।।
- Pandit🍁