रास्ते चलते ही जाते थे
और मंज़िल का फ़ासला कुछ इतना था
कि ज़िंदगानियों में गिनूँ
तो भी कम पड़े

पहुँचा हूँ आज जब
तब ये जाना है-
शीशे की दीवार है एक
कि मैं चाँद को देख तो सकता हूँ
मिल नहीं सकता!

- Piyush Mishra