मैंने जब अपनी पहली नज़्म लिखी थी
अपनी बड़ी-बड़ी सी आँखों को
कैसे तुमने और भी बड़ा करके तब
देखा था मुझको!

अब तो मेरी नज्में बाज़ारों में बिकती हैं
दाम भी अच्छे लगते हैं
और तारीफें भी मिलती हैं
और जब कोई पढ़ते-पढ़ते
आंसू एक गिराता है
झाँक के अपनी नज़्म से तब ये देख लिया करता हूँ मैं-
कहीं ये आँखें वही तो नहीं !

- Piyush Mishra