बाबूजी,
उस रात मैं आपके पैरों पर सर रखकर रोना चाहता था मगर किसी ने कंधे पर हाथ रख कर कहा- "श्मशान में रोते नहीं हैं।"
मैं नहीं चाहता था आपके जाने के बाद लोग आपके इस बेटे को बेअदब कहें। मैं तो उस बात को मान गया.. मगर आँसू... उन्हें कौन समझा सकता था। श्मशान के सन्नाटे में चिटपुट करती आग की आवाज़ आने लगी और आँखें छलछला उठीं मेरी। वो उस मौसम की पहली बारिश थी।

तब से दिन, महीने, साल बदले... नहीं बदला, तो वो मौसम। वो आग की चिटपुट अब भी गूंज रही है कानों में, वो बारिश अब भी जारी है।

आपका बेटा

- Piyush Mishra