अॉफ़िस से घर आते ही तब
होता था इक शोर-शराबा
बातें-वातें हँसी-ठहाका
'पहले मुझको गोदी ले लो'
कहते दौड़े आते बच्चे
कहते थे जो 'चाचा-चाचा'
'पानी-वानी तो पीने दो'
रोक के उनको कहती अम्मा
बाबूजी पूछा करते थे
'दिन कैसा गुज़रा है सारा?'
घर जैसे जन्नत लगता था
दिन की सारी थकन मिटाता

बाबूजी माँ फिर गए छोड़ कर
हो गया आंगन का बँटवारा
मेरे हिस्से में आया है
दीवारों से बातें करना
और दीवार के उस जानिब भी
फैला है गहरा सन्नाटा

- Piyush Mishra