सुबह के इस पहर में फिर आँख खुल गयीअंधेरे मे उसका अक्स़ फिर नज़र आया है।जानता हूँ मेरे मन का भ्रम है वोफिर भी... ना जाने क्यों... लगता है जैसे।इस बार हकीक़त से ज्यादा हकीक़त बनवो मेरीे नज़रो के सामने आया है। - इकराश़
सुबह के इस पहर में फिर आँख खुल गयीअंधेरे मे उसका अक्स़ फिर नज़र आया है।जानता हूँ मेरे मन का भ्रम है वोफिर भी... ना जाने क्यों... लगता है जैसे।इस बार हकीक़त से ज्यादा हकीक़त बनवो मेरीे नज़रो के सामने आया है।
- इकराश़