10 DEC 2017 AT 18:34

मेरा ग़ालिब तू, मेरा फ़िराक़ तू,
मेरा फैज़, जॉन, फ़राज़ तू,
क्या पढ़ूँ अब मैं शायरों को,
जब शेर खुद हो मेरे रूबरू।

एक मिसरा ही मेरे नाम का
कलम से अपनी लिख दे तू,
ग़ज़ल तेरी बन जाऊँ मैं,
है बस मेरी ये आरज़ू।

तेरी कलम पे निसार हैं
मेरी ख्वाहिशें, मेरी जुस्तुजू,
मज़हब तू मेरा बन गया
मेरी गीता तू, मेरी क़ुरान तू।

शायरी मुतादी है तेरी,
मेरे हर हर्फ़ में भी अब है तू,
आने लगी है कागज़ों से,
मेरे भी अब, तेरी ही बू।

तेरी बज़्म में बैठी रहूँ,
जब मशरूफ़ लिखने में हो तू,
सजदा वहीँ कर लूँगी मैं,
अपने ख़ुदा का, रूबरू।

- Parul Chaturvedi