मेरे पास जो था वह सब दे दिया मैंने तुम्हें,
अब कुछ भी नहीं बाकी बचा मेरा मुझ में।
मैं जानता हूं तुमने कुछ मांगा भी नहीं मुझसे,
बस इसलिए ही कुछ कह भी तो नहीं पा रहा हूं खुद से।
उम्मीदें कुछ टूटती जुड़ती सी रहती हैं आजकल मेरी,
मन भी बहुत सारे इशारे करता रहता है आजकल,
पर क्या करूं मैं सुनता ही नहीं, आदत है मेरी।
तू कभी मुझ में समाई हुई सी, तो कभी मुझ से कोसों दूर सी नज़र आती है,
तेरी अलग बात है, तुम मेरे पास होते हुए भी खुद को अलग सा कर जाती है।
बहुत खुश हूं मैं आजकल और सपने टूटने के डर से बेचैन सा भी रहता हूं,
बांधकर नहीं रखना चाहता हूं तुझे, बस तेरे पल-पल बदलते ख्यालों से डरता हूं।
मैं जानता हूं कि तुझे मुझ से अच्छा कोई मिल ही जाएगा,
तू रह भी जाएगी, गुजारा कर ही लेगी,
पर डरता हूं, जो तेरी आत्मा को चाहिए,
वो क्या तुझे कभी मिल भी पाएगा?
बस इसीलिए मेरे पास जो कुछ था वो सब दे दिया मैंने तुम्हें,
अब कुछ भी नहीं बाकी बचा मेरा मुझ में।
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