Pankaj Vishwajit   (पंकज विश्वजीत)
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Joined 8 December 2016


Joined 8 December 2016
2 FEB 2022 AT 20:07

जीवन वास्तव में जटिल है . इस भ्रम मात्र से कि जीवन सरल है हम इसका निर्वहन नहीं कर सकते हैं . हाँ, यहाँ पलायन की संभावना अवश्य है - 🍁

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18 APR 2019 AT 9:50

तुम, जैसे एक पौधा
मिट्टी, ये दुनिया
मैं तुम्हारे लिए
धूप, हवा और पानी बनूंगा

मैं बनाये रखूंगा
हँसी की हरियाली
जिसमें खिलते रहेंगे
स्मृतियों के फूल .

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10 JUN 2021 AT 21:40

तुम्हारी लानतों के पिंजर में बन्द
मुक्ति के लिए फड़फड़ाता हुआ
मैं एक बेचैन पक्षी हूँ।

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1 JUN 2021 AT 12:58

तुम्हारी यादों से जुड़ा है हर मौसम

मौसम खींच लाता है
तुम्हारी यादों को
तुम थी तो
खींच लाती थी मौसम

पर इस मौसम में
स्मृतियाँ इतनी अधिक गहरी और मज़बूत
इतनी अधिक कि जैसे
दम भर बरसात हो
गीली हो ज़मीन
और हाथ से एक तिनका ना टूटे .

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15 APR 2021 AT 21:52

पलायन .

कहीं दूर निकल चलिए . बिना किसी की परवाह किये . सबको, उनके हाल पर छोड़ कर . और किसी की कोई खोज-ख़बर मत रखिये . ख़ुद को खो दीजिए . ख़ुद के वजूद का एहसास जब तक रहेगा, हम ज़िन्दगी में धँसते चले जाएंगे .

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10 APR 2021 AT 20:17

उदासी के दिन .
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उदासी के दिन
अब बदल रहे हैं मौसम में
लंबा और लंबा,

उदासी एक दीमक है
जो मेरी आत्मा में घर कर गई है
और खाये जा रही है धीरे-धीरे
झरता जा रहा हूँ मैं
किसी लकड़ी की तरह

तुम्हारा साहचर्य
मेरी आत्मा पर कोलतार था
जिससे बचता आया था अबतक
उदासी के इन दीमकों से ।

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9 APR 2021 AT 0:15

दुःस्वप्न .

मैंने देखा
तुम वापस मेरे पास हो
जाने से पहले की तरह,
और मुझसे बतियाते हुए
किसी बच्चे की तरह सुला रही हो मुझे
कि मैं जाग गया -

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21 JAN 2021 AT 22:35

रास्ते भूल गया
पर दृश्य याद रहे
उन सड़कों पर
जिस पर कभी चला था
तुम्हारे साथ-साथ -

अब नहीं भटकता मैं
रास्ते की तलाश में
भटकता हूँ बेचैन तो बस
उस दृश्य की तलाश में
जो तुम्हारी नज़रों से देखे थे मैंने .

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18 DEC 2020 AT 10:40

दुःख ढंगरता है
सुख के ऊपर से
किसी रोड रोलर की तरह,
और कुछ समय
सपाट सड़क की तरह
ठहर जाता है सब कुछ ज्यों का त्यों
कितनी हलचल कितना शोर
फिर भी बना रहता है वह ठहराव

सुख आता है
जैसे उखड़ती है सड़क
और छिटक जाती हैं गिट्टियाँ
इधर से उधर

सुख
सड़क की तरह उखड़ जाने,और
गिट्टियों की तरह छिटक जाने की क्रिया है .

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12 NOV 2020 AT 18:37

पैकिंग
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जाने से पहले
मैं अधूरी छोड़ दूंगा कोई किताब
लिख रखूंगा किसी सादे पन्ने पर
किसी कविता का शीर्षक मात्र
और उधारी तो बिल्कुल नहीं चुकाऊंगा

जाने से पहले
मैं कुछ भी नज़र भर के नहीं देखूंगा
और बिना किसी किसी से विदा लिए,
बिना कोई लंबी साँस छोड़े
मैं चुपचाप
निकल लूंगा अपने गंतव्य को

जाने से पहले
मैं समेटने से ज़्यादा
बिखराना चाहूंगा
वापस आने की तमाम संभावनाओं को .

- पंकज विश्वजीत || 2018

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