कोई होश नही,कोई मदहोश नही,बेख़बर तो बिलकुल तक नही
नही,नही,नही,वो किसी भी देश का तो सुल्तान तक नही
आज ख़बर,कल अख़बार,यहाँ तो कोई सूचना तक नहीं
अच्छा,आज किसी भी देश का सुल्तान तो जिंदा तक नही
सबसे बड़ा तो यह गुनाह,क़लम हाथ मे देनी तक नही थी
और,हाथों में तलवार दे दी,अब तो कोई सुल्तान जिंदा तक नही
कोई झूठी भूल-चूक हुई हो तो एक झूठी माफ़ी बक्श देना
चश्में में तो मेरे झूठ को पल के लिए तो एक जगह तक नही
आओं,मिलों हमसें,अब हम तो कोई किसी के सुल्तान नहीं
बेज़ुबान परिंदो में कोई उड़ान भर सकें वो भी आवाज़ तक नही
क्या ही खूब लिखते हो,लिखते को भी कभी सुनते हो क्या
हम तो सुने को गैर-सुना कर दे,ऐसे भी कोई सुल्तान तक नही
बंजर है,बंजर थी,और हृदय की धरती,बात तो क्या करते हो
खंज़र थी,ख़ंजर है,खंजर हृदय की दास्तान,आवाज़ तक नही
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