अमर इतिहास
मत छेड़ो उस इतिहास को,जो पुरखों ने बनाया था,
लहू बहा था बहोत सारा, तब चरखा चल पाया था।
भीख की आज़ादी न थी वो, पर हमने उनसे छीनी थी।
उसे पाने के लिए तो, लाखो की जान गई थी।
वो तो लातो-बातों का समन्वय था,जो अंग्रेजो से लड़ पाए थे,
वरना बिखरे हुए हम भारतवासी, कब निखर पाए थे?
एकजुट होकर ही तो आजादी हमने पाई थी,
बाकी भीख में तो गरीबी, लाचारी और भ्रष्टाचार जैसी कुरीतियां ही पाई थी।
छोड़ो उन बातो को अब, आगे बढ़ने की बात करो,
याद करके वीर जवानों को, न कोई फरियाद करो।
विकास की डगर पकड़ के आगे चलते जाना है,
इस भारतवर्ष की अमरगाथा को जन जन को सुनाना है।
विश्वगुरु है हम, ये सबको दिखलाना है,
भारतवर्ष की महानता का, डंका घर घर में बजाना है।
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