खुली ऑंखों से जो दिखे वही विश्वास है अॉंख बंद कर के देखना ही तो अंधविश्वास है। -
खुली ऑंखों से जो दिखे वही विश्वास है अॉंख बंद कर के देखना ही तो अंधविश्वास है।
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आज ज़रा-सा वक्त क्या थमातुम तो जिंदगी जीना ही भूल गए। आज ज़रा-सी भाग-दौड़ क्या कम हुईतुम तो ठहरना ही भूल गए।आज ज़रा-सा खुद से तो मिलोकहीं उसे भी तो नहीं भूल गए। -
आज ज़रा-सा वक्त क्या थमातुम तो जिंदगी जीना ही भूल गए। आज ज़रा-सी भाग-दौड़ क्या कम हुईतुम तो ठहरना ही भूल गए।आज ज़रा-सा खुद से तो मिलोकहीं उसे भी तो नहीं भूल गए।
कुछ चंद पलों के माइने समझिए जनाबवरना उम्र तो सब काट ही जाते हैं। -
कुछ चंद पलों के माइने समझिए जनाबवरना उम्र तो सब काट ही जाते हैं।
लफ्ज़-ए-उर्दू का भी कभी मुल्क हुआ है, मोहब्बत का भी कभी मज़हब हुआ है। -
लफ्ज़-ए-उर्दू का भी कभी मुल्क हुआ है, मोहब्बत का भी कभी मज़हब हुआ है।
ये तो नज़रें हैं जो सब कह जाती हैं, वरना लफ्ज़ों का खेल तुमसे खूब किसे आता है। -
ये तो नज़रें हैं जो सब कह जाती हैं, वरना लफ्ज़ों का खेल तुमसे खूब किसे आता है।
हम तुमसे नफ़रत करें, जरूरी नहीं, मगर अजनबी होना, लाज़मी है। -
हम तुमसे नफ़रत करें, जरूरी नहीं, मगर अजनबी होना, लाज़मी है।
एक ही रास्ते पर रोज़ नई शाम है,एक ही रिश्ते मे रोज़ नया मुकाम है। -
एक ही रास्ते पर रोज़ नई शाम है,एक ही रिश्ते मे रोज़ नया मुकाम है।
लोगों को अक्सर सूरत सवांरते पाया है,कोई अपनी ही रुह तक न पहुंच पाया। -
लोगों को अक्सर सूरत सवांरते पाया है,कोई अपनी ही रुह तक न पहुंच पाया।
जश्न तो बहुत मनाए पर,जश्न-ए-मोहब्बत कभी कबूल न हुआ। -
जश्न तो बहुत मनाए पर,जश्न-ए-मोहब्बत कभी कबूल न हुआ।
इस फूल के शबाब पर शबनम हो तुम,बिन तेरे मुझ मे ये नूर कहाँ। -
इस फूल के शबाब पर शबनम हो तुम,बिन तेरे मुझ मे ये नूर कहाँ।