योग
पंचतत्व से उत्पन्न होना
वियोग
पंचतत्व में विलीन होना-
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कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
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आजकल पेड़ कटने लगे हैं
और दुसरी ओर ग्लोबल वार्मिंग कि चिंता
क्या कोई समझेगा मुझे?
या फिर इस पर्यावरण के खतरे को?-
ईश्वर की अगाध
लीला देखा
प्रकृति को बनाया
प्रकृतिसे मिलने
वाला जीवन
बहुत ही सुन्दर
बहुत ही अद्भुत
प्रकृति हमेशा देती है
और कहती हैं
तुम देने आयें हो
लेने नहीं
यही पर सब छोड़ जाना है
पंचतत्व से बने हो
पंचतत्व में विलीन होना है
फिर किस बात का
अहंकार?
जीवन देना ही
प्रकृति है
-
कभी वक्त से पूछा है,
कि हमने अपने थोडे से
लालच के लिए, पूरे
पर्यावरण का विध्वंस कर दिया
चारों ओर से प्रदुषण युक्त बना दिया
सांस लेना भी मुश्किल हुआ है
आने वाला वक्त बहुत कठिन होगा
इसलिए, वक्त आया है
अपने पर्यावरण और इस एक
धरती को बचाने की
-
ऊंचाई से गिरता हुआ
झरना भी अपनी सुन्दरता
को खोता नहीं तो हम क्यों
अपने अस्तित्व को खो देते है ?
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो
आपको नीचा दिखाने
के लिए आपका अपमान करेंगे
फिर गिरना है तो उस झरने
कि तरह गिरो, अपने
आत्मसम्मान खोये बिना-
देश का नाम गौरवान्वित कर धरती पर पधारे
जीत अंतरीक्ष पर देख सभी भारतीय खुश हुए सारे-
प्रिये,
यह मेरा प्रेम पत्र पढ़कर
तुम नाराज़ ना होना, नाराज़ होने
से अच्छा है तुम एक पेड़ अपने
घर के सामने आंगन में लगा लेना, मुझे
कोसने के बजाय उसे रोज़ पानी
डालना, मुझ पर गुस्सा जब आयेगा
उस पेड़ के तले बैठ जाना,
बैठने के बाद मेरे बारे में तो बिल्कुल
मत सोचना, सोचना बसंत ऋतु कब आयेगा?
जब बसंत ऋतु आयेगा, तब फल
भी लगेंगे, जब तुम फल खाने लगोगी
तब मैं समझूंगा, तुम्हारी नाराजगी सही थी
मेरा होना न होना कुछ फर्क पड़ता नहीं
क्योंकि, तब तक मैं इस ब्रह्माण्ड के अनंत में
विलुप्त हो चुका होगा, तब तक
मैं तुम्हारे भीतर शेष भी नहीं रहूंगा।
तुम सिर्फ तुम रहोगी मेरी जगह कोई और...!-
आज का व्यंजन
कड़ाई में तेल डालकर
थोड़ा उसमें जीरा,
कुछ खड़ी मसाले
डालकर लगाया
तड़का, चिरररर सी
आवाज कर्ण को
भाती है
कड़ी पत्ता का तड़पना
भी जायज़ जैसे इन सबको
गरूड़ पुराण कथा अनुसार
शिक्षा देने के बाद
ऊपर से नमक का छिड़काव
मानो इनके जले पर
नमक छिड़क दिया
फिर भी हमें अपना स्वाद
दे जाते हैं।-