जैसे धरा को चाहत रहती है, अंबर से मिलने की, मैं अपने पंजों पर खड़े हो, एडी उठा, तुम तक पोहचने की कोशिशों को संजो कर रखना चाहती हूं। अपनी बाहों का हार बना तुम्हारे होठों की बुदबुदाहट को अपने ओष्ठों पर महसूस करना चाहती हूं.. जैसे समुद्र में बस्ता है सूर्य, हर रोज़, ठीक वैसे ही, मैं तुम में समाना चाहती हूं।
तुम्हें अगर मैं अपनी डायरी के पन्ने पढ़ाऊं, तो समझ लेना मेरा तुमसे बिन प्रलोभन प्रेम है। तुम्हें लेकिन पता भी न चल पायेगा, कि मैंने तुम्हारे नाम की पर्चियां बुकमार्क कर, हर उस पन्ने पर लगा रखी है जब जब तुम्हें याद किया था।
यदि तुम अब आए, तो बिन घड़ी बांधे वक्त की परछाइयों से परे, एक उम्र भर के लिए आना, मेरी डायरी के पन्नों में अपने नाम की कहानियां पढ़ने के लिए।
तुम्हारे बोलने से मेरे जिस्म में गुदगुदाहट कम रौंगटे जरूर खड़े हो जाते थे, पर तुम्हारे माथे पर एक शिकन तक नहीं होती थी, उस ही से मैंने यह जाना.. कि जीवन में जो लोग आपको तोड़ कर अपनी मुस्कुराहट बुनते हैं, वो अपनी जिंदगी में इतने टूटे हुए होते हैं, कि उन्हें मात्र कुछ अचरज भरे शब्द बोल इत्मीनान मिल जाता है.. ऐसे लोगों पर दया करनी चाहिए, प्रेम नहीं।
तू नाराज़ हो, एक ओर समेट खुद को बंधन में बाँध लेता है, एक दुनिया अलग देखता है मुझसे परे, और अपने सपनों की मुट्ठी कस कर बांध लेता है, बेजान सा कर देता है रूह को मेरी, जिस्म में सांसें मंद हो जाती है, तुझसे अलग ज़िन्दगानी सोच, तभी तो मुझे फ़िर, हिचकी कम आती है।