Nitisha Varun   (नितिशा)
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Joined 14 November 2016


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Joined 14 November 2016
26 JAN 2022 AT 1:17

जैसे धरा को चाहत रहती है,
अंबर से मिलने की,
मैं अपने पंजों पर खड़े हो,
एडी उठा,
तुम तक पोहचने की
कोशिशों को
संजो कर रखना चाहती हूं।
अपनी बाहों का हार बना
तुम्हारे होठों की बुदबुदाहट को
अपने ओष्ठों पर महसूस करना चाहती हूं..
जैसे समुद्र में बस्ता है सूर्य,
हर रोज़,
ठीक वैसे ही,
मैं तुम में समाना चाहती हूं।

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6 SEP 2021 AT 23:01

तुम्हें अगर मैं अपनी डायरी के पन्ने पढ़ाऊं,
तो समझ लेना
मेरा तुमसे बिन प्रलोभन प्रेम है।
तुम्हें लेकिन पता भी न चल पायेगा,
कि मैंने तुम्हारे नाम की पर्चियां
बुकमार्क कर,
हर उस पन्ने पर लगा रखी है
जब जब तुम्हें याद किया था।

यदि तुम अब आए,
तो बिन घड़ी बांधे
वक्त की परछाइयों से परे,
एक उम्र भर के लिए आना,
मेरी डायरी के पन्नों में
अपने नाम की
कहानियां पढ़ने के लिए।

तुम आना एक बार,
मुझसे मेरा हाल पूछने के लिए।

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14 AUG 2021 AT 21:07

कोई गले से लगा लेगा क्या मुझे?
जिंदगी के बोझ तले,
बाजुएं खिंच सी रखी हैं।

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19 JUL 2021 AT 21:56

तुम्हारे बोलने से
मेरे जिस्म में गुदगुदाहट कम
रौंगटे जरूर खड़े हो जाते थे,
पर तुम्हारे माथे पर एक शिकन तक नहीं होती थी,
उस ही से मैंने यह जाना..
कि जीवन में जो लोग
आपको तोड़ कर अपनी मुस्कुराहट बुनते हैं,
वो अपनी जिंदगी में इतने टूटे हुए होते हैं,
कि उन्हें मात्र कुछ अचरज भरे शब्द बोल
इत्मीनान मिल जाता है..
ऐसे लोगों पर दया करनी चाहिए,
प्रेम नहीं।

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3 JUN 2021 AT 13:34

नहीं चाहिए।

मुझे मुस्कुराहट से परहेज़ नहीं,
बस तू अब वो वजह नहीं चाहिए,
ज़िन्दगी में बेहद खुश हूं मैं,
तेरी आदत सी जो बिखेर दे मुझे,
वही सब फ़िर से नहीं चाहिए।

दिल को खुश रखती हूं अब,
अपनी अहमियत का अंदाज़ा है मुझे,
अब तेरी दखली,
अपनी ज़िन्दगी में नहीं चाहिए।

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24 MAY 2021 AT 19:36

उदास आंखें।

मां कहती हैं,
तेरी हसीं में
ऋतुओं जैसी बरसात है
खुशी की
पर वह यह भी बोलती हैं,
कि तेरी आंखें उदास रहती हैं।

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19 MAY 2021 AT 18:26

Detour.

The scent of their bodies,
the slithering touch and
their effects in our lives
from their presence.
No, nothing really goes away.

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2 MAY 2021 AT 20:17

हिचकी..

तू नाराज़ हो,
एक ओर समेट खुद को
बंधन में बाँध लेता है,
एक दुनिया अलग देखता है
मुझसे परे,
और अपने सपनों की मुट्ठी
कस कर बांध लेता है,
बेजान सा कर देता है
रूह को मेरी,
जिस्म में सांसें मंद हो जाती है,
तुझसे अलग ज़िन्दगानी सोच,
तभी तो मुझे फ़िर,
हिचकी कम आती है।

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1 MAY 2021 AT 20:50

कि इस रिश्ते का कत्ल करने के लिए
वो रात भर औजार ढूंढता रहा,
भूल गया कि जिस रिश्ते में इज्ज़त ही नहीं,
उस रिश्ते की कोई आत्मा ही नहीं होती।

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25 APR 2021 AT 9:21

कौन दोषी?

उठाते फिर रहें हैं
क्या कंधे, क्या वाहन,
सरक रही हैं रेथ सी जिंदगियां
हाथों से अपने,
ये जिंदगी इकठ्ठे करने का
क्या हम में ही जोश है?

क्यों जवाब नहीं कोई
क्यों व्यवस्था यूं बेहोश है?
हर ओर इंसानियत मर रही है,
क्या ये भी कलयुग का ही दोष है?

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