नीतिका सक्सेना   (नीतिका)
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Joined 15 July 2017


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Joined 15 July 2017

ना जाने इश्क़ था, या थी जंग,
पर खुद को हार चुके है अब हम।

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हमसे, हमारे लहज़े में बात करने लगे है वो,
इस इश्क़ में 'मैं' से 'हम' होने लगे है वो।

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मैं वहीँ हूँ, जहाँ छोड़ गए थे।
पर वो नही, जो छोड़ गए थे।

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पल, और पल गुज़रते गए,
चाहत के पन्ने नफरत से भरते गए।

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Not in the words, but in the moments
of silence with you, lies my poetry.

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नींदो में अब वो सुकून कहाँ है?
सपने तो है, पर ख्वाब कहाँ है?

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हर चेहरे में नज़र आती हो।
शराब हो क्या,
जो नशे सी चढ़ जाती हो?

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घर के आंगन से मुँह मोड़ लेती हूँ।
मैं शहर की ऊँची दीवारों में जीती हूँ।

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महीनों माँ के आंचल को तरस जाते है,
हम घर से दूर, मकान बनाने जाते है।

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ज़माने की भी अजब कहानी है,
बेटी रुकना चाहे तो मनाही,और
बेटा जाना चाहे तो बदनामी है।।

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