NITI   (©Niidhi Tiwari 'नीति')
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🌼 25/07/2001 🌼
Insta - niti_writes
Joined 26 January 2019


🌼 25/07/2001 🌼
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5 JUL 2022 AT 18:41

मेरी सोती पलकों में भी
सदा जागते रहे तुम।
कई ऐसे लम्हें रहे जब मैं भूल गयी खुद को,
एक पल नहीं ऐसा जब भूली हूँ
कि तुम्हें कितना पसन्द है
आसमान का गुलाबी हो जाना।
मन्दिर से घर लौटते बेख़याली में
कितनी ही बार अपना समझ
तुम्हारे घर का दरवाज़ा खट-खटा आई।
कितने अवसर आये कि पूजते हुए ईश्वर को
तुम्हारा कोई पसन्दीदा गीत गाने लगी।

तब-तब पीड़ाएँ समझता रहा संसार मेरे अश्रुओं को,
जब-जब मेरी आत्मा नृत्य करने लगी
पढ़कर कहीं नाम तुम्हारा।
कितने बसन्त बीते जब तुम्हारी अनुपस्थिति में
एक फूल नहीं खिला मेरे बगीचे में ,
और कभी तो पतझड़ भी मोगरे सा खिल उठा,
मेरे यह सोचते ही कि "तुम लौटोगे अवश्य"!

मैं वचन नहीं देती
कि तुम्हारी प्रतीक्षा करते हुए
ये मेरी आँखें अन्त तक बूझेंगी नहीं,
परंतु प्रतिज्ञा है प्रियतम!
ये देह जवाब दे दे फिर भी
देहरी पर रखे दीप में
मेरे प्राण सदैव जलते रहेंगे
तुम्हारी एक आहट की आस में।

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23 JUN 2022 AT 22:37

जब मैं होती हूँ सबसे करीब तुम्हारे
खुद को मीलों दूर पाती हूँ तुमसे
जब-जब जी भर निहारती तुम्हें
हथेलियाँ मेरे भाग्य की तब तब रिक्त ही लौटी हैं।
मेरे हाथ हमेशा तुम्हारी पीठ का ही
स्पर्श कर पाए,
परन्तु आँखों ने मेरी
तुम्हारे मन की सतह टटोली है।
प्रतीक्षाओं में तुम मेरे जीतने रहे
आलिंगन में कभी न रहे उतने।
नासमझ हैं वो जो कहते हैं
तुमसे मिलना ही तुम्हें पाना होगा।

ईश्वर तो मेरी प्रार्थनाओं में
कबका तुम्हारी आत्मा मेरे नाम कर चुका है।

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6 JUN 2022 AT 22:20

वो बनती थी जो बड़ी सयानी,
उससे आखिर यह कैसी भूल हुई ?
सपने थे महलों के जिसके,श्रद्धा उसकी,
एक अल्हड़ के चरणों की धूल हुई।

(शेष अनुशीर्षक में)

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4 APR 2022 AT 22:16

तेरी बस एक आरज़ू, एक तेरी ख़्वाहिश लिये बैठे हैं,
बैठे हैं शराबियों में और गले तक आँसू पीए बैठे हैं।

तुझे बस चाँद पाने की है, क्यों चाहत मेरे जानाँ ?
देख कितने तारे, कबसे तेरी ओर निग़ाह किए बैठे हैं।

लोग कहते हैं भूल जाओ उन्हें जो बिछड़ गए हैं तुमसे,
पर वो हुए सिर्फ आँखों से ओझल,दिल में देखिए,बैठे हैं।

कोई बताओ इन नए रकीबों को जो फ़िरते मजनू बन,
हम तेरे इंतज़ार में पुरानी कई ज़िंदगानियाँ जीए बैठे हैं।

ख़ुदा तो रहना चाहे तुझमें ही हर पहर हर वक़्त,ऐ इंसान
नादान उसको ज़माने में अलग से कई मकाँ दिए बैठे हैं।

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20 NOV 2019 AT 18:18

पन्नों के सिवा पास हमारे , क्या ही बचा होगा?
शायर का दर्द है,सिर्फ शायरी से ही बयाँ होगा।

जी उठे , तुमसे मिलकर कई बार इसी मोड़ पर,
अब जो जा रहे छोड़कर,तो मरना भी, यहाँ होगा।

अश्क लिए,आँखो में बोल गया फिर मिलने को वो,
पता है हमें भी ,अब मिलना फिर कहाँ होगा।

लोग कहते हैं,हम अलग हैं,हमारे मज़हब अलग है,
यूँ पहचान जाते हैं वो,हमपर कोई तो निशाँ होगा?

दुनियाँ के कायदों ने सिर्फ अलग ही किया है,
क्या इश्क़ करने वालों के लिए दूसरा कोई जहाँ होगा?

मुक़द्दर लाएगा हमें साथ कभी तो , कहीं तो ,
यहाँ ना सही , मिलना हमारा फिर वहाँ होगा।

उनके निक़ाह का बुलावा आया है, रक़ीब के घर से,
हम जाएँगे तो सोचो वहाँ का, क्या ही समाँ होगा?

नदियाँ बिछड़ कर पर्वत से , डूब मरती है सागर में,
शायद हाल-ए-दिल महबूबा का भी,ऐसा ही रहा होगा।

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11 NOV 2019 AT 18:38

सर्दियों में हाथ सेकता है प्रेम,
सूर्य की उष्णता में।
रात,लोरियाँ सुनाती हैं प्रेम को।
प्यास बुझाने के लिए प्रेम की,
नदियाँ उधार लेती हैं 'जल',सावन से।
और चाँद?
चाँद तो घण्टों बाते करता है इससे।

बिछोह,
शीत से ठिठुरता जाता है।
बिछोह ने लोरियों के इंतज़ार में,
एक झपकी भी ना ली है वर्षों से।
इसके लिए एक बूँद जल भी,
समंदर है।
और चाँद क्या,
पूरा ब्रह्माण्ड रूठा है इससे।

आश्चर्य की बात है,
बिछोह उत्पत्ति है प्रेम की ही।

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3 NOV 2019 AT 19:32

जहाँ चाँद हो पर,
रोशनी नहीं।
जहाँ काले बादल बरसों,
इंतज़ार करते हो बरसने का।
जहाँ सूर्य सिर्फ सूर्यास्त,
के समय नज़र आता हो।
जहाँ नदियाँ ठहर कर,
भूल गयी हों बहना।
जहाँ पक्षी आकाश छोड़कर,
केवल डाल पर नज़र आएं।
जहाँ फूल मुरझाकर भी,
ना गिर पाएं शाख से।
और घास सारी,
नीली पड़ गयी हो।

यदि मिले तुम्हें कोई,
ऐसा भूभाग,
तुम समझ जाना,
वह उदास प्रेमिकाओं की,
बस्ती है।

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1 NOV 2019 AT 18:37

घर के बगीचों को,
सजाए रखती है।
अपनी मज़बूत जड़ो से,
ये जीवित रखती है,
खुशहाल रखती है,
जन्मदात्री मिट्टी को।
अनेक अवसरों पर तो,
पूजनीय भी होती है दूब।

परन्तु
जब कभी ये प्रयास करती है,
लोगों द्वारा निश्चित सजावटी,
ऊँचाई से ऊँची होने का,
या अपनी मर्ज़ी से उगने का,
इन्हें उखाड़ कर,
फेंक दिया जाता हैं,
या फिर काट दिया जाता है,
फिरसे उतना ही छोटा,
कर दिया जाता है,
जितनी उनकी आवश्यकता है।

सोचती हूँ,"नारी"सा जीवन,
ना जाने कौन-कौन जी रहा।

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14 OCT 2019 AT 23:31

प्रेम में सौ शर्तें ना रखूँगी मैं,
बस मुझपर थोड़ा प्यार जता लेना,
ज़्यादा मेहनत ना करनी होगी,
और मुझसे मुझको चुरा लेना।

( पूरी कविता "कैप्शन" में पढ़ें )

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30 SEP 2019 AT 17:45

कौन कहता है?
लेखक बनने के लिये बस अपने जज़्बात लिखना आना चाहिए,
लेखक बनने के लिये तो पहले दूसरो के खयालात पढना आना चाहिए।

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