21 MAR 2018 AT 0:11

ना जाने क्यों रूठा है तू मेरे ही दर -दरवाज़े से,
इतनी भी नाकाबिल में नही।
तूने तो ज़िन्दगी दी थी ना मुझे..
फिर इस ज़िंदगी में ख़ुशी क्यों नही।
रोज़ ही लड़ती हूँ तेरी रहमत के इतंज़ार में,
इतनी जल्दी इख्तियार उठा लू तुझसे
इतनी भी तंगदिल में नही।

- Nishtha_jn