कभी किसी रोज, तुझसे अनजान सा मिलूँ, तू चाय पर बुलाए, तुझसे मेहमान सा मिलूँ, आगे इतने बढ़ें, कि प्यार के किनारे चलें, गुस्ताखी फिर करें, और तेरे घर के चौबारे चलें, मोहब्बत से पहले, मुझे तेरी खता याद आए, इश्क़ फ़ीका पड़े, जब तेरी दगा याद आए, नई मुलाक़ात में भी, तेरी पुरानी पहचान से मिलूँ, कभी किसी रोज़, तुझसे अनजान सा मिलूँ।
कोई याद दिलाये उनकी यादों में याद गुम है। ज़ुल्फ़ों में उलझी ज़ुल्फें हाथों में हाथ गुम है। आंखों में चेहरा उनका होठों पे बात गुम है। मैं गुम हूँ उनके पीछे, वो मेरे साथ गुम है। कोई याद दिलाये...
गम के बहाव को तिनके की ख़ता बताया करते हैं, कुछ लोग यहाँ आँखों की गलती छिपाया करते हैं। जहाँ तूफां तेज़ हो कोई हमसफर नहीं मिलते, चलो हमारे घर वहीं हैं, हम वहीं से आया करते हैं।
दरवाज़ा देखे बाट मेरी, मैंने मुझे, निकलने ना दिया, राहें पूछे पता मेरा, मैंने मुझे, चलने ना दिया, मैं पड़ा रहा लोहे सा, मैंने मुझे, जलने ना दिया, पत्थर बने मूरत कई, मैंने मुझे, ढलने ना दिया।