अहट से तुम्हारी, वो बिखरी सी ,समेटलेती खुदको.... और तुम केहते हो उसे तुम्हारी खबर ही नहीं।क्यों परखते हो भला,इस कदर मौसम को,जब मौसमौ के मिजाज को,तुमनें कभी समझा नहीं... - "सनेही"Skylark
अहट से तुम्हारी, वो बिखरी सी ,समेटलेती खुदको.... और तुम केहते हो उसे तुम्हारी खबर ही नहीं।क्यों परखते हो भला,इस कदर मौसम को,जब मौसमौ के मिजाज को,तुमनें कभी समझा नहीं...
- "सनेही"Skylark