20 JUL 2018 AT 20:14

अहट से तुम्हारी,
वो बिखरी सी ,
समेटलेती खुदको....
और तुम केहते हो
उसे तुम्हारी खबर ही नहीं।
क्यों परखते हो भला,
इस कदर मौसम को,
जब मौसमौ के मिजाज को,
तुमनें कभी समझा नहीं...

- "सनेही"Skylark