आओ भाई !संतों आओ, शुभ घड़ी आई देखो आज।
दीप जलाकर अंतर्मन को, ज्योतिर्मय किया सुजान ।
दौड़ रहा चंचल चित्त मनवा, जैसे घोड़ा हो बेलगाम।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत,चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
आषाढ़ महीना पूर्ण चंद्र-सा, है सतगुरु मेरे तारणहार।
काला पयोधर-सा मचल रहा, शिष्यों का झुंड ज़हान।
अपने चरित के पुनित भाव से,लिया है हमको संभाल।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
सूर,- कबीर -तुलसी -सहजो,सबने लिया गुरु का साथ।
राम नाम करके सुमिरन, किया पार सिंधु बिन जलयान।
अहो भाग्य मिला गुरु का शरण, हो निराकार या साकार।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत,चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
गोविंद आये संग गुरु के बन-ठनकर ,कबीरा जी के द्वार।
प्रथम वंदना गुरु की करूं,जिन्हीं के कारण हुआ सनाथ।
वारूं सिर चरणों पर तेरे ,जो कराये गोविन्द से पहचान।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
सूर्य प्रकाश का पूर्ण स्रोत अनोखा,प्रतिफलन रूप है चांद।
कदम बढ़ावे एक-एक कर,अमा निशा से पूनम की रात।
हरै निरंतर सघन तिमिर को,दे धवल-शीतल शुभ्र मुस्कान।
बलिहारी गुरु होऊं शत-शत, चरणों में स्वीकारों प्रणाम।
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