जी रही हुँ या कट रही है जिंदगी,
बस मुट्ठी मे सिमट रही है जिंदगी।
बहुत शौक है मुझे जन्मदिन मनाने का,
क्योंकि हर साल घट रही है जिंदगी।
मुझे पिंजरे में एक पंछी सा कैद कर,
खुद दरबदर भटक रही है जिंदगी।
मुझे पता है आस्तीन मे सांप भी बहुत है मेरे,
मुझको डस कर पलट रही है जिंदगी।
यहाँ तो अपने ही बैर रखते है हमसे,
खुद की आँखो मे खटक रही है अब जिंदगी।।
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