16 AUG 2017 AT 13:32

भय,भूख,भ्रष्टाचार का,
कत्ल करदो कहता हूँ,
तुम जलाने की क्या सोचोगे,
मैं आग में ही रहता हूँ।
झुलसा हू पहले से ही,
भीड़ वाले लड़कों से,
तपता हूँ हर रोज यहाँ मैं,
नफ़रत की गरम सड़कों से।
रोज जलते दिल का दर्द,
मैं रोज ही सहता हूँ,
तुम जलाने की क्या सोचोगे,
मैं आग में ही रहता हूँ।
बेरोजगारी,गरीबी का,
लगता चुनाव में ईंधन हैं,
घुसखोरी मक्कारी से,
चलता देश का इंजिन हैं।
सच्चा खून हूँ देश का,
सेना की रग में बहता हूँ,
तुम जलाने की क्या सोचोगे,
मैं आग में ही रहता हूँ।

- अपरिभाषित