Nilesh Borban   (अपरिभाषित)
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Joined 3 March 2017


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Joined 3 March 2017
7 JUN 2022 AT 12:29

पेड़ काट दिये और वहाँ घर बनाया
परिंदे बना दिये गए दीवारों पर

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28 JAN 2019 AT 22:21

जब से मुझे तेरी चिठ्ठियाँ नहीं मिलीं
तब से बागों में तितलियाँ नहीं मिलीं

लाख नाम आया तेरा मेरी हर दुआ में
मगर खुदा को मेरी अर्जियाँ नहीं मिलीं

अंदर की उदासी चली भी जाती शायद
पर हवा को खुली खिड़कियाँ नहीं मिलीं

रहे राह से मंज़िल तक धूप ही धूप में
राहों में कहीं भी बदलियाँ नहीं मिलीं

इस बार इंतज़ार हर बार से ज़्यादा था
लेकिन दिसंबर को सर्दियाँ नहीं मिलीं

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30 DEC 2018 AT 22:10

किसी ने तेरा नाम लिया हम पलटे ,
हम तेरे नाम से पुकारे जा सकते है।

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7 JAN 2022 AT 0:36

एक शख़्स़ को दुनिया समझ रहे थे,
कितना कमज़ोर है भूगोल हमारा

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26 DEC 2021 AT 12:23

"तारे तोड़ कर लाना",
हम दोनो जानते है
कि यह एक बेतुकी सी बात है

पर वो बना देती है
टिमटिमाते हुए तारे
काग़ज़ पर एक ब्रश से

और मैं लिख देता हूँ
उसके तारे उतारने पर यह कविता

और अब मेरी कविता में
चाँद और तारे दोनो है।

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22 DEC 2021 AT 10:37

मजबूत पलकें
||कविता अनुशीर्षक में||

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4 DEC 2021 AT 21:53

दूसरा तकिया भी नही लिया हमने
याने कि तेरी कोई उम्मीद ही नही

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24 NOV 2021 AT 21:43

"हम भूल गये"
(Poem in caption)

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19 NOV 2021 AT 19:10

किस्सा हो नही सकता मुख़्तसर उसका
याद दिलाती है हर शब हर सहर उसका

इसलिए भी खिड़की की सीट चाहिए थी
सड़क किनारे ही पड़ता था घर उसका

कैसे-कैसे बुरे ख्याल आने लगते है मुझे
एक मिनट को बंद आये गर नंबर उसका

इन्ही काँधों पे है उसकी यादों का बोझ
जिसपे हुआ करता था कभी सर उसका

मुझ जैसा भी नही है इस बात का है ग़म
मुझसे बेहतर तो होता हमसफर उसका

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5 NOV 2021 AT 0:22

यहीं पर जैसे दुनिया रुक गयी है
हमारी बात आगे कब बढ़ेगी?

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