23 NOV 2017 AT 20:53

वो एक आवारा हवा का झोंका सा मैं पतझड़ के पत्तों की एक ढ़ेरी सी। वो आया और मुझे अपने आगोश में भरकर मुझे भीतर तक झकझोर गया।
अब मैं हूँ यहाँ बिखरे सूखे पत्तों सी, खोई हुई सी। पर न जाने वह कहाँ है।
उसके आने का और खुद के समेटे जाने की उम्मीद में...

मुंतज़िर
- कुछ बिखरी पत्तियाँ।

- © निहारिका