मैं कविता भी कहता हूँ,मैं गज़ल भी गाता हूँ,कलम मेरी चंद अशआर और कुछ छंद भी लिखती है;कलाकार हूँ,मैं ठहरा कला का पुजारी,कवि कहो या कहो श़ायर,एक ही बात है!धर्म के नाम पर कला कहाँ बँटती है! - © निहारिका
मैं कविता भी कहता हूँ,मैं गज़ल भी गाता हूँ,कलम मेरी चंद अशआर और कुछ छंद भी लिखती है;कलाकार हूँ,मैं ठहरा कला का पुजारी,कवि कहो या कहो श़ायर,एक ही बात है!धर्म के नाम पर कला कहाँ बँटती है!
- © निहारिका