24 JUN 2017 AT 16:47

मैं कविता भी कहता हूँ,
मैं गज़ल भी गाता हूँ,
कलम मेरी चंद अशआर
और कुछ छंद भी लिखती है;

कलाकार हूँ,
मैं ठहरा कला का पुजारी,
कवि कहो या कहो श़ायर,
एक ही बात है!

धर्म के नाम पर कला कहाँ बँटती है!

- © निहारिका