देखा नहीं मैंने
उस चाँद को
एक अरसे से...
हरजाई है,
सितमगर नज़र आता है,
एक अरसे से...
क्यों देखा करूँ,
इस ज़ालिम को
तू ही बता!
न तू ही है
और न तेरा साथ
एक अरसे से...
देखा जो गर
मैंने फिर इसे,
चेहरा तेरा दिखाई देगा;
तो तोड़ लिये
उससे सभी ताल्लुकात
एक अरसे से!
- © निहारिका