देश जूझ रहा है लोगों की जान जा रही है अपने बिछड़ रहे हैं हस्ते खेलते परिवार उजड़ रहे हैं सपने में भी न सोचा जो ऐसा हर जगह मंज़र है ख्वाबों से जो सजाई थी ज़मीन वो अब बंजर है इसलिए समझदारी दिखाएं मास्क लगाए और बेवजह बाहर न जाएं अपने साथ-साथ अपनों की ज़िंदगी भी बचायें।
ज़िंदगी ! देख.. एक और साल जीलिया मैं साल थोड़ा अजीब था अपनो के करीब होके भी उनसे दूर था पहली बार हाथ की लकीर नहीं बल्कि वक़्त खुद फकीर था कुदरत ने भी कमाल खेल रचा इंसान को इंसान से ही दूर करदिया खड़ा उम्मीद है इस साल नज़दीकियाँ बढ़ेंगी और दुआएँ दिल से दिल तक लगेंगी।
आओ दीवारों से बात करते हैं कुछ अनकहे किस्से युहीं बयां करते हैं छुपे हुए बैठे एक कोने में जो यादों के मंज़र हैं आओ चाय की चुस्कियां लेते-लेते उन्हें भी आज याद करते हैं.. ..आओ दीवारों से बात करते हैं
बात करो तो ज़रा संभल के करो सुना है कि दीवारों के भी कान होते हैं खैर कई ज़ुबां वाले तो खुदगर्ज़ी की मिसाल होते हैं इसलिए बेज़ुबान बेमिसाल होते हैं.. ..आओ दीवारों से बात करते हैं