माँ मुझे पढ़ना है ,
तुम्हारी बिटिया को
पढ़ लिखकर
नाम तुम्हारा रौशन करना है
माँ ! मुझे पढ़ना है ।..
मेरे पंख उड़ान की चाँह लिये,
फौलादी बुनियाद लिये ,
मेरे मन में दबी जो चिंगारी है
उसे आग करना है ।
माँ !.....मुझे पढ़ना है ।..
पापा को भी समझाओ माँ !
मैं जब पढ़ लिख जाऊँगी ,
गिरवी पड़ी सहारा अपनी
उसे छुड़ाऊँगी ।
कोई आँधी तूफान जो आये
नही घबराऊँगी ।
अब अपने सपनो को
दिन रात गढ़ना है ।
माँ ! मुझे पढ़ना है । ...

- 🖋निहारिका नीलम सिंह