उन्हें कुछ इस कदर मोहब्बत है उससे की गीला भी नही ,उम्मीद भी नही ... कहा भी नही ,अनकहा भी नही.... अब ना पाना है ,ना खोना है ... है कुछ जो बाकी एहसास ...कहते हैं मुकम्मल है जीने के लिए !!
चुभती हैं आँखें मुझे उसकी जब उसमे मेरे लिए इश्क़ दिखता है !! अलविदा कर उस बेबसी को .. कही दूर निकल आयी हूँ .. आहिस्ता आहिस्ता तेरा ये अफसाना भी खामोश है ..... अलहदा खुद को तुझसे तेरे खातिर कर आई हूँ .....
गुमनाम जो मैं हूँ ....तुझसे -तेरी गलियों से ... इस गुमनामियत में तुम मुझे महफूज़ रहने दो.. "इश्क़ तुमसे यूँ है "महज जो नाम देते हो... कह के इश्क़ उसको तुम फिर कही गुमनाम करते हो... रहने दो यूँ छोड़ो इश्क़ सी बातें ... ना भाती थी न भाति है न भाएँगी कभी तेरी बातें.... मैं गुमनाम हूँ मसरूफ हूँ.... मुझे मशरूफ़ रहने दो !!